Gunjan Kamal

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खोजी

नितिन दौड़ते हुए आया और अपने बड़े भाई नीरज के पैरों में झुककर प्रणाम कर ही रहा था कि नीरज ने उसे अपने दोनों हाथों से उठाकर अपने गले लगा लिया। 


"अब तू बड़ा हो गया है, बिल्कुल मेरे बराबर और वैसे भी तेरी जगह मेरे पैरों में भी नहीं बल्कि मेरे दिल में है भाई।" नीरज ने अपने छोटे भाई नितिन के कंधे को पकड़ कर कहा।

नीरज और नितिन में उम्र का फासला छः साल का था लेकिन दोनों के विचारों में इतनी समानताएं थीं कि लोग उन्हें जुड़वा कहकर ही बुलाते थे। तीन साल पहले जब नीरज फौज में जा रहा था तब सबसे ज्यादा दुख नितिन को ही हुआ था। नितिन भी अपने बड़े भाई नीरज की तरह फौज में जाना चाहता था लेकिन अपनी ऑंखों की दिक्कत के कारण मेडिकल में उसे छाॅंट दिया गया था तभी से वह अपने आप को बहुत ही अकेला महसूस कर रहा था। ऐसा नहीं था कि उसे दूसरी कोई और नौकरी मिल नहीं सकती थी लेकिन वह तो कुछ और बनना ही नहीं चाहता था। मुझे फौज में जाकर देश सेवा करनी है, अपने देश के लोगों को बचाना है बगैरा.. बगैरा.. बहुत सारी और बातें थी जिसके साथ वह बचपन से ही जीता आ रहा था। 

"अब मेरा भाई आ गया है वह किसी न किसी तरह मेरी इच्छा तो जरुर पूरी करेगा। अब मुझे मेरा रास्ता भी मिल जाएगा और मेरी मंजिल भी।" कहता हुआ नितिन एक बार फिर से अपने बड़े भाई नीरज के गले लग गया।

तीन साल पहले नीरज जिस नितिन को छोड़ कर गया था वह धीरे - धीरे  बदल रहा है इस बात का अंदाजा नीरज को इन बीते दो सालों में आए हुए छुट्टी में हो तो रहा था लेकिन इस बार उसे यह लग रहा था कि उसके छोटे भाई के मन में कुछ न कुछ ऐसा तो है जो वह खोजी बनकर खोज रहा है। 

"बचपन से उसकी हर ख्वाहिश को पूरा करने वाला मैं  उसके फौजी बनने की चाहत को पूरा नहीं कर पाऊंगा लेकिन यह बात उससे कहूं तो कैसे कहूं। और पगला तो मन में यही संजीव रहा होगा कि उसका भाई उसके लिए सब कुछ कर सकता है और उससे फौजी बनाने के लिए और सब कुछ करेगा लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता। ऐसा क्या करूं कि उसकी चाहत पूर्ण हो?" खाना खाने के बाद छत पर टहलते हुए नीरज अपने छोटे भाई नितिन के बारे में ही सोच रहा था। 

"मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है? क्या करूं मैं?" नीरज सोच ही रहा था कि नितिन उसे खोजते हुए छत पर आ गया। 

"क्या सोच रहें हो भाई अकेले - अकेले ?" नितिन ने नीरज के पास आकर उसे देखते हुए कहा।

"भाई! मैं जानता हूॅं अभी आप मेरे बारे में ही सोच रहें थे तो क्या सोचा आपने?"  नितिन ने नीरज की तरफ उत्सुकता से देखते हुए कहा।

नीरज ने पहले तो अपने भाई को छत पर लगे झूले पर बिठाया और खुद भी उस पर बैठने के बाद उसकी तरफ देखते हुए कहा "जहां तक मैं तुम्हें जानता हूॅं तुम अपने देश की रक्षा करना चाहते हो। लोगों को बचाना भी चाहते हो और यही वजह है कि तुम फौज में भर्ती होना चाहते हो लेकिन तुमसे यह किसने कह दिया कि एक फौजी ही यह सब कर सकता है औ......" 

नीरज कुछ और बोलना चाह रहा था तभी बीच में ही टोकते हुए नितिन ने कहा "लोगों को मैं डाॅक्टर बनकर भी बचा सकता हूॅं लेकिन मैं डाॅक्टर बनना नहीं चाहता। मुझे दवाई देखकर ही उल्टी आने लगती है और ऐसा खून देखकर भी तो होता है। बचपन से तुम्हारे साथ एक ही सपना देखता आ रहा था कि फौजी बनूंगा लेकिन वह भी अब नहीं बन सकता क्योंकि अपनी ऑंखों ने ही धोखा दे दिया। एक खोजी की तरह ऐसे कई रास्तें खोजें जिस पर चलकर मैं अपनी चाहत को पूरा कर सकूं लेकिन आपका चेहरा देखकर लग रहा है कि मेरी चाहत अब कभी भी पूरी नहीं होगी। इस दुनिया में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिनकी चाहत पूरी नहीं होती फिर भी वें जीते हैं। मैं भी  कुछ ऐसा काम कर लूंगा जिससे मेरा और मेरे परिवार का  जीवनयापन  हो जाएगा।" 

नितिन की आवाज से ही लग रहा था कि वह दुखी है। अपने छोटे भाई को नीरज दुखी देख नहीं सकता था तभी उसके एक दोस्त का फोन आया। उस वक्त वह उससे बात तो नहीं करना चाहता था लेकिन बहुत दिनों बाद उसका फोन आया था तो उसने उठा लिया। इधर - उधर की दो - तीन मिनट बातें होने के बाद नीरज के दोस्त ने जो कहा उसके बाद तो नीरज के चेहरे पर मुस्कान आई ही साथ में आवाज में भी खनक आ गई। 

"मैं दुखी हूॅं और भाई मुस्कुरा रहें।लग रहा है यें बदल रहे हैं इन्हें तो मेरी परवाह ही नहीं।" मन ही मन में सोचते हुए नितिन छत से जाने के लिए झूले से उठने ही वाला था कि नीरज ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे फिर से झूले पर बिठा दिया। 

"भाई कल हम दोनों ऐसी जगह पर चलेंगे जहां हमें हमारे सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे। अब तुम सब कुछ मुझपर छोड़ दो और मुस्कुराते हुए चलों अब सोने चलते हैं। मम्मी - पापा हमारा इंतजार कर रहे होंगे। चलो! उनसे मिल कर सो जाते हैं।" नीरज ने मुस्कुराते हुए नितिन की तरफ देखते हुए कहा।

"भाई! मुझे तो मालूम ही नहीं था कि मैं एनजीओ से जुड़ कर अपने देश के लोगों की मदद कर सकता हूॅं, उनकी रक्षा कर सकता हूॅं। हमारे देश में बहुत सारे ऐसे एनजीओ हैं जो एक फोन काॅल पर मदद करने के दौड़ पड़ते हैं। यहां पर जुड़कर मुझे वह खुशी मिलेगी जो मैं चाहता था और अभी चाहता हूॅं।  मैंने आज अपनी खुशी खोज ली है भाई और  मेरे लिए मेरी यह खुशी खोजने वाले खोजी तो  आप है। आपने मुझे यहां आते हुए रास्ते में जो समझाया अब मेरी समझ में आ रहा है। आपने कहा था कि  एक फौजी बनकर ही हम अपने देश के लोगों की सेवा नहीं कर सकते। हम तो अपने देश के लोगों की सेवा उनकी मदद करके भी कर सकते हैं। उनकी एक पुकार पर यदि हम उनके पास पहुंच जाए और उन्हें हमारी सहायता मिल जाए इससे बड़ी मदद और क्या हो सकती हैं? एक सैनिक तो देश के हर नागरिक के पास जाकर मदद कर नहीं सकता लेकिन हम एनजीओ वाले तो हर नागरिक के पास जाकर उनकी मदद कर सकते हैं। माना कि यहां पर मुझे पैसे बहुत कम मिलेंगे लेकिन जितने भी मिलेंगे उसी में मेरी खुशी होगी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद भाई। आज मैं यहां नहीं आता तो ना तो अपनी ऑंखों से ही यह सब देख पाता और ना ही इन लोगों के बारे में विस्तार से जान पाता।  मैं जानता तो था इन लोगों के बारे में लेकिन कभी भी मैं इन्हें  खोज नहीं पाया था और मुझे अब लग रहा है कि जिस चीज की खोज मैं कर रहा था वह खोज यहां आकर पूरी हो गई है।" नितिन ने अपने बड़े भाई नीरज को गले लगाते हुए कहा। 

नितिन एनजीओ के बाकी लोगों से मिलने लगा। अपने भाई को  उनसे बातें  करते हुए देखकर नीरज मन ही मन में यही सोच रहा था कि आखिरकार मैंने इसका खोजी बनकर अपने भाई की खुशी खोज ही ली और इसे खुश देखकर आज मैं कितना खुश हूॅं यह मेरी गीली ऑंखें बयां कर रही है।


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                                          धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻


गुॅंजन कमल 💗💞💓
१७/०८/२०२२

# लेखनी दैनिक कहानी प्रतियोगता 

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6 Comments

Chetna swrnkar

11-Oct-2022 07:15 AM

Bahut khub

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Milind salve

18-Aug-2022 04:08 PM

शानदार

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Mohammed urooj khan

18-Aug-2022 11:14 AM

Nice 👌👌👌

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