समय
Lekhny
विषय - समय
विधा - कविता
मौलिक रचना
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शीर्षक - समय
समय की अभिधा मैं किसे दूं?
बचपन की अठखेलियों में
आँख मिचौनी खेलता समय,
या प्रेम-समन्दर में नैया खेता ,
इक पल में ओझल होता समय
या मृत्यु शैय्या के सिरहाने,
द्रौपदी के चीर सा लगता समय,
या योगी के नैन मूंदते ही,
युगों - कल्पों में बदल जाता समय
ये समय की परिभाषा,
अलग-अलग जगह पर,
अलग-अलग अर्थों में,
एक अनेकार्थ का बोध क्यूं कराती?
बचपन के अनजाने खेल में,
प्रेमियों के हृदयों के मेल में,
मृत्यु के दुखद क्षणों में,
परमानंद के शून्य क्षणों में,
बदलने का स्वांग क्यूं करता है?समय
सच में आनंद में घट जाता है समय
दुख-दर्द में ठहर सा जाता है समय
मन की स्थिति से बंध जाता है समय
मन के अलग रंग-ढंग से,
मन की दशा व दिशा से,
समय बनता बिगड़ता है,
चलिए अमन की बात करते हैं,
या तो समय के साथ चलते,
या समय के पार चलते ।
***** © मीनाक्षी मीरा
रोहिड़ा (माउन्टआबू)
राजस्थान
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25-May-2021 12:03 PM
बहुत खूब दीदी
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Kumawat Meenakshi Meera
25-May-2021 12:07 PM
Thanks a lot
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Kumawat Meenakshi Meera
25-May-2021 12:02 PM
Thanks a lot everyone for like my post
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