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ग़ज़ल

*ग़ज़ल*


1222 1222 1222 1222

बिठाकर सामने खुद को खुदी से प्यार कर लीजे।
इनायत है इसी में ज़िंदगी से प्यार कर लीजे।

सभी तन्हा रहे वाज़िब नहीं है रात को घर में ...
कोई छत पर भी आकर चांँदनी से प्यार कर लीजे। 

ख़ुदा बनने की कोशिश आप बिलकुल बाद में करना...
अभी बस आदमी हो आदमी से प्यार कर लीजे।

ज़माल–ए–यार को कहकर कई शायर हुए पैदा...
निसार–ए–इश्क़ होकर शायरी से प्यार कर लीजे।

नज़र की आबरू है द़ीद–ए–बेरुख़ बदन होना।
सुख़न की आरजू हो सादगी से प्यार कर लीजे।

बयांँ–ए–दर्द में "दीपक" शिकन से क्या जुदा मिलना।
मुनासिब है खुदा के बंदगी से प्यार कर लीजे।

दीपक झा रुद्रा

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16 Comments

Mithi . S

20-Aug-2022 03:22 PM

Nice

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Khushbu

19-Aug-2022 05:55 PM

बहुत खूब

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Raziya bano

19-Aug-2022 09:34 AM

Beautiful

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शुक्रिया

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