सच्चा मर्द!
★ सच्चा मर्द..!★
अब रोम रोम में क्रोध उठे
बनकर भीषण ज्वाला ज्वार!
क्या बनने चला था क्या बन गया
क्या भूल गया तू माँ का प्यार?
न सोच बदली न बदला विचार
क्यों कर रहा तू अत्याचार?
क्या बदल गई है मर्द की परिभाषा!
क्यों बुझ गई है मन की अभिलाषा!
क्यों थाम लिए हो पाप का हाथ
क्यों पाल रहे मन मे कुत्सित विचार?
खुद मर्द कहते हो, मर्दानगी किसे दिखाते हो
तुम अपने से कमज़ोर पर अपनी ताकत आजमाते हो!
क्या तुम्हें लगता है मुझे होगा भय किसी का
थम जा, बन्द कर ये पापाचार..!
आज पुरुषों पर कोई नारी भरोसा न कर रही
दोस्त यार तो क्या, अपनी माँ-बहन भी डर रही
तुम्हे रक्षक बनना था, तुम भक्षक बन गए हो
कही न कही खुद तुम ही इसके ज़िम्मेदार।
ये बता! तुझे अपना पौरुष किसे दिखाना है
उस नारी को, जिस जननी का तू जना है
सच्चा पुरुषार्थ है उनकी मर्यादा का सम्मान करने में
क्यों कर रहा इस दिखावे का प्रचार?
अब पुरुषोत्तम राम कोई नही होता
अब श्रीकृष्ण भी कही नही मिलते
अब महाकाली भी कहीं छिप गयी है
जो कर देती तुम्हारा सर्वसंहार।
गर सच्चा मर्द बनना ही है तो,
मत बहक आकर दिखावे में
तू कर सबका सम्मान हृदय से
ये सम्पूर्ण जग है तेरा परिवार।
#MJ
©मनोज कुमार ''MJ"
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