डायरी संदीप की।
22/08/22
भाद्रपद मास
दिन सोमवार,
सायंकाल,,
सखी जयश्रीकृष्ण,
राधे राधे।।
सखी जानती हो आज लिपी महोदया ने शीर्षक गुरू दक्षिणा दिया था।लिखने को ।और गुरू पर लिखना ठीक वैसे ही है जैसे या तो माॅ,पर लिखना या पिता पर लिखना ।यदि दोनो को मिला दू तो स्वयं ईश्वर पर लिखना।गुरू की महता कबीर जी कहते है ।
""गुरू गोविंद दौऊ खडे,काके लागू पाॅय,,
बलिहारी गुरू आपने जाको गोविंद दियो बताए।।""
अब भी कोई संदेह है कि गुरू की महता को या कुछ रह गया ?
यदि थोडी सी संदेहास्पद स्थिति है तो समझे एक उदाहरण देता हू या कह लो प्रयास करता हू कुछ समझाने की गुरू की महता की।गुरू वैसे अर्थ कहे तो भारी।।
क्या वजन मे भारी या ज्ञान मे भारी।
न ,,
दोनो मे ही भारी नही।
गुरू यदि ज्ञान मे भारी है तो गूगल सरीखा ज्ञान किसी मे है क्या?
तो फिर
तो सखी स्पष्ट है गुरू वो है जो अपने सीमित साधनो से असीमित की यात्रा कराने की समर्थ रखता हो।
यानि जो आपको यहा आप हो वही से ऐसी दिशा दे दे कि आपकी मनचाही मंजिल का सफर सरल ही नही सरस व विनोदपूर्ण सा कर दे।
तो यह तो रही गुरू की बात।अब इसकी महता।
क्या कोई बच्चा पैदा होते जानता है वो कौन क्या कहा व कैसे है तो कौन है जो उसे इस सब की अनुभूति कराता है स्पष्ट है विभिन्न गुरू। चाहे वो मां पिता, शिक्षक व कोई भी जीव ही क्यू न हो तो ऐसे ही रावण था औजस्वी व मेधावी पुलसत्य वंश का वंशज। यानि धर्माचार्य के वंशज का अंश। पर हुआ क्या कुछ न जानता था वंशज महान वंश के होने के कारण बौद्धिक कौशल परिपूर्ण व बल की माने तो अद्भुत शक्ति का संचार।पर यहा सब श्रेष्ठ होने पर भी गुरू कौन रहा ,,
कैकसी का पिता।यानि उसके नाना। जो अपनी महत्वकांक्षाओ को अपने नाती पर लाद उसके जीवन को एक ऐसे मोड पर ला देते है कि सर्व समर्थ भगवान को चुनौती दे कर न उनसे युद्ध करता है बल्कि उनसे अच्छा प्रदर्शन करता है। पर क्या यश मिला। नही न ,व उसे कोई बोध हुआ कि वो कौन से मार्ग पर है ।जिस भाव व उदेश्य से उसे पोषित किया उसी अनुरूप परिणाम था।
रावण को युद्ध करना था वो कारण ढूंढ लाया।हम न्याय अन्याय के पक्ष मे नही गुरू की महता के बारे मे बात कर रहे है।सर्व सर्वोत्तम गुणो की खान कैसे महत्वकांक्षी गुरू के कारण किस हश्र पर पहुंचा बताने की आवश्यकता नही।
तो गुरू यदि चाहे तो मिटटी के ढेले को रब कर दे।
चाणक्य आजकल के इतिहास का क्या सटीक परिणाम का प्रमाण नही है।
गुरू द्रोण ने शिक्षा कौरव-पांडव दोनो को दी पर क्या वही उन दोनो के अकेले गुरू थे। ।यहा गुरूओ मे पाड़व द्रोण के साथ-साथ कृष्ण की मानते रहे वही धृतराष्ट्र अपनी गुरूता दुर्योधन पर लांधता गया परिणाम ।मुझे बताने की आवश्यकता नही।।
आज यू ही खेल खेल मे मैने एक सखी से द्रोण के बारे मे प्रश्न कर लिया ।कि उन्हे गुरू दक्षिणा मे एकलव्य के अंगूठे के कारण जो बदनामी से एकलव्य को श्रेय मिला इसका कारण।क्या कहे ?
या क्या वह गुरू के लालच या लोभ को दर्शाता है ?
तो सखी ने कहा आप ही जाने ।तो वायदा था एक उसका यहा खुलासा करना चाहता हू।
बात गोलमोल यू करूगा कि आज कि व्यवस्था बडी खतरनाक है।बात राजनिति की कर रहा हू।जाने कब कोई सर कलम कर दे।सो बात समझे।गुरू द्रोण ने शिक्षक होने के नाते क्यू न सबको धनुर्धर ही बना दिया।क्यू न एक ही विद्या से और मे, सबको पारंगत कर दिया। चलो यह भी छोडो ।आप सिर्फ यह बताए क्या हर्ज था यदि दुर्योधन राजा हो जाता।क्योकि राजनीतिक गुरूजन जानते है कि राजशाही मे राजा का बडा व बलवान पुत्र राजा होता है जैसे कि वो युवराज बनाया भी गया था। दुर्योधन को तो क्यू नही दुर्योधन को राजपाठ सौंप देना चाहिए था।
क्या गलत कह रहा हू।यदि हाॅ तो क्यू ।।क्या सिर्फ इसलिए कि धृतराष्ट्र कार्यवाहक राजा था।पर मान कर देखे तो क्या पाण्डू कार्यवाहक राजा नही था। वो भी तो धृतराष्ट्र की अंधता के चलते राजा बना था।फिर क्यू एक स्थिति सही एक के लिए जबकि दूसरे के लिए नही ।।विचारे। ।यह मान ले कि सारी शिक्षा सबको नही दी जा सकती। यहा उचित पात्रता की बात थी। भील तो एक कारण था बताने का।चलो मान लो वो व्यस्था जातिवाद की बुराई पर थी पर आप सुधर गए क्या? जातिवाद चला गया क्या ?
क्यू यह संविधान की सूचियो मे है।क्यू विकास मानव के लिए नही बल्कि जातिवाद के लिए है।सब और राजनीति है बदनाम गुरू है।तो भी,,
यदि ऐसा है तो आज के दौर मे पुलिस को पैरा मिलट्री सी ट्रेनिंग क्यू न दे दी जाती।।
और पैरा मिलट्री वालो को सेना की सी ट्रेनिंग क्यू न दे दी जाती, और फिर इनमे भी क्यू भेद रखे गए। क्या सभी जनरल ही बनेगे। नही न तो इन सबके पीछे की जो मंशा है न वही एकलव्य के अंगूठा लेने की मंशा है।तो यही है अंगूठा लेने की कहानी। आप देखे पाकिस्तान कया धमकाता है ,,कि वो परमाणु शक्ति है।।तो है न कुपात्र के हाथ मे शक्ति,,ऐसे ही किम जोंग की कहानी है।चलो इसे भी छोडो,,
वही गुरू द्रोण ने अपने बेटे को चोरी से ब्रह्मास्त्र की शिक्षा दी।क्या फलीभूत हुई ? वो तो उच्च जाति का था।लेकिन था तो कुपात्र ही न ,,फिर एकलव्य का तो अंगूठा ही गया,,अश्वत्थामा का तो सर्वस्व चला गया।
यदि अब भी न समझे तो व्यक्तिगत रूप से कमैंट करे उत्तर के लिए हाजिर हूं।
अभी लंबा हो रहा है व समय का सबको अभाव है तो फिर इस विषय पर कभी बतिआएगे सखी अभी तो जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण।
तुम्हारा दोस्त,
संदीप शर्मा।
देहरादून वाला।।
Babita patel
12-Mar-2023 04:04 PM
nice
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Radhika
09-Mar-2023 12:51 PM
Nice
Reply
Chetna swrnkar
24-Aug-2022 12:35 PM
Very nice
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Sandeep Sharma
24-Aug-2022 08:15 PM
थैंक्स आदरणीय जयश्रीकृष्ण।
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