Prbhat kumar

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तुम गई




शीर्षक:- "तुम गई"

तुम गई तो जिन्दगी के नींद सारी ले गई।
ख्वाब बुनता नित दिवस सांस संग ले गई।
वह तुम्हारा मुस्कुराना और फिर शान्त होना।
जिन्दगी महज एक कहानी बनकर रह गई।

इस हृदय में पुष्प सारे आपसे मिलकर खिले थे।
इस नयन में खूबसूरत हर छवि आपके ही बसे थे।
इस तन को जब आपने हल्के से छुकर कहाँ था।
पाँव मेरे थरथराते पथ जब आपके हम चले थे।

जब कभी तुम ना आते मन व्याकुल हो जाता था।
ना कोई संदेश ना ही इख़्तियार आपका आता था।
उस दिवस सखियाँ तुम्हारी खूब मजाक उड़ाती थी।
ऐसे चिढ़ाती थी जैसे दिन में तारे नजर आता था।

सोचता था क्या हुआ पर कुछ पता चलता नही।
सप्ताह हो गया एक पर उनका कुछ पता नही।
इस हृदय की तड़प हर दिवस बढ़ने लगी थी।
किन्तु अकस्मात् उनकी आवाज जब मैंने सूनी थी।

मन प्रफुल्लित हो गया वह दिवस अच्छा लगा था।
उनसे मिलकर पुनः प्यार अपना सच्चा लगा था।
दूर से करके इशारे जब वह पुनः जाने लगी थी।
आँख में आसू लिए वह बहुत कुछ कहने लगी थी।

एकटक उस समय जब मैं देखता उनको रहा।
मौन अधर थे हम दोनों के नयन सबकुछ कह रहा।
एहसास हो गया हृदय को आखिरी पल यही है।
उस दिवस राह नयन आखिरी क्षण तक तकता रहा।

स्वरचित एवं मौलिक रचना 
नाम:- प्रभात गौर 
पता:- नेवादा जंघई प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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15 Comments

Bahut khub

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Chetna swrnkar

27-Aug-2022 08:43 PM

Nice

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shweta soni

27-Aug-2022 07:31 PM

Nice

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