सेवा

लघुकथा -

                  * सेवा *

       बहू दौड़ी - 2 आई और अपनी सास से बोली - " मां जी, चलिये नाश्ता कर लीजिए । आज मैंने अपने हाथों से आपकी मनपसंद चीजें बनाई है ।" उसकी बहू नलिनी जो उससे कभी सीधे मुंह बात तक नहीं करती थी , आज इतने प्यार से बोल रही थी । बहू के इस स्वभाव पर उसे आश्चर्य हुआ ।

       " चलिये , ना मां जी । खाना ठंडा हो जाएगा ।" बहू ने फिर मनुहार की तो उसने आश्चर्य से पूछा - " तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना बहू ! "

          " क्यों , क्या हुआ है मेरी तबियत को , अच्छी - भली तो हूं । चलिए , आप जब तक नाश्ता कीजिए , तब तक मैं आपके कपड़े प्रेस कर दूं ।" अंदर जाने पर मैंने आश्चर्य से पूछा , " क्या बात है , आज तो मां की बड़ी सेवा हो रही है ?"

        नलिनी ने बुरा सा मुंह बनाया । बोली - " सेवा माई फुट । आज , तुम्हारी मां को पिताजी के फंड वाले रुपए मिलने वाले है , वरना इस बुढ़िया की सेवा तो मेरी जूती भी न करे ।"

          बहू की बात सुनकर , कोर मां के हाथ से छूटकर थाली में जा गिरा ।।

          --- बलजीत गढ़वाल 'भारती

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3 Comments

Renu

28-Aug-2022 04:03 PM

👍👍

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Reena yadav

28-Aug-2022 01:31 PM

भावनाओं से परिपूर्ण वर्तमान को साक्षी मानकर बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने 💐👍😇

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Raziya bano

28-Aug-2022 11:23 AM

V nice

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