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हमसफर


दिन सांझ की छांव में ढलते रहे , 
दरिया थे समन्दर में मिलते रहे I

फितरत थी शम़ा की जल जाना ,
कोई हो रोशन वो बस जलते रहे I

रात के अरमां , मेहमां रात ही के थे ,
ख्वाब थे हुजूर ऑखों में पलते रहे ।

बड़ी खूब हैं अदाकारियां उनकी ,
दोस्त मेरे मुझी को छलते रहे ।


  
किनारा कर गये  "गौतम" से हमसफर ,
साथ सफ़र में जिनके हम चलते रहे ।


-------- गौतम वशिष्ठ
        9636637075

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7 Comments

shweta soni

31-Aug-2022 11:47 AM

Behtarin rachana

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Zakirhusain Abbas Chougule

30-Aug-2022 01:20 PM

वाह बहुत खूब

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Punam verma

29-Aug-2022 09:18 PM

Very nice

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