अम्मा
अम्मा
एक थी अम्मा, बहुत पुरानी
बड़े संघर्ष की थी उनकी कहानी
मन कोमल पर जुबान थोड़ी तीखी
दुनिया के संघर्षों से रहती आंख भीगी।
पूत थे कमाऊ, पर बहुएं थी थोड़ी ठेढ़ी
मौका मिलते ही सबने आंख फेरी
अकेली अम्मा को छोड़ चल दिए
बुढ़ापे के सहारे भी उनको छल दिए।
अपना था ठौर पर नही ठिकाना था
पास पड़ोस तो था पर सब बेगाना था
समझ के उनको बेचारी सब देख रहे लाचारी
जिसने भी डाली लालच से भरी नजर डाली।
रिश्ते नाते सब कन्नी काट रहे थे
बुढ़िया कब मरेगी, देख बाट रहे थे
बचा खुचा जो है, चलो छांट लेंगे
पैसा, जेवर, गहने और घर मिल के बांट लेंगे।
जीवन के अंतिम समय में उनको ये समझ आया
मोह सब बेकार, असली प्यार सिर्फ माया
ना बेटे, ना बहुएं, ना रिश्ते और न ही नाते
धन दौलत से पराए भी अपने हैं बन जाते
अगर जेब हो खाली हर रिश्ता समझता जी की जंजाली।।
आभार – नवीन पहल – २८.०८.२०२२ 🙏🏻🙏🏻🌹💐
# प्रतियोगिता हेतु
Satvinder Singh
13-Sep-2022 10:51 AM
आज के पदार्थवादी युग का यही हाल है
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shweta soni
31-Aug-2022 12:01 PM
Behtarin rachana
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Punam verma
29-Aug-2022 09:14 PM
Very nice sir
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