रिश्तों की राजनीति- भाग 21
भाग 21
घर में जब सान्वी सबको कपड़े खोलकर दिखा रही होती है तो साथ में कुर्ता पायजामा देखकर हैरान हो जाती है।
वो अभिजीत से पूछती है…..दादा तूने कब खरीदा कुर्ता पायजामा पता ही नहीं चला?
अभिजीत भी हैरान रह जाता है, लेकिन फिर समझ जाता है ये जरूर सिद्धि ने खरीदा होगा उसके लिए। अपनी भावनाओं को छिपाते वो कहता है….तू और अक्षय शॉपिंग में इतने व्यस्त थे कि तुम्हें दूसरों का ध्यान ही कहाँ था। मुझे अच्छा लगा कुर्ता, मैंने ले लिया। अब बहन की शादी है, नए कपड़े लेना तो बनता है। घर में ख़ुशी का माहौल होता है। सान्वी के आई बाबा खुश होते हैं यह सोचकर कि उनकी बेटी की शादी इतने बड़े घर में होने जा रही है।
अभिजीत सिद्धि को मैसेज भेजकर कुर्ते पायजामे वाले सरप्राइज के लिए आभार प्रकट करता है। दोनों में दोस्ती की शुरुवात हो चुकी होती है। अभिजीत को सिद्धि के लिए कुछ अलग सा महसूस होने लगता है।
पन्द्रह दिन बाद सान्वी की शादी अक्षय के साथ करीबी रिश्तेदारों और मीडिया की मौजूदगी के बीच सभी रीति रिवाजों के साथ सम्पन्न हो जाती है। शादी में रिश्तेदारों की इतनी भीड़ नहीं होती, जितनी मीडिया की होती है। हर पत्रकार यही जानने के लिए बेताब होता है कि आखिर एम एल ए जगताप पाटिल ने अपने बेटे की शादी एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी से क्यों की?
जगताप पाटिल का एक ही जवाब होता है…..वो अमीर-गरीब में भेदभाव नहीं रखते, उनके लिए पैसे से ज्यादा संस्कार जरुरी है। उन्हें अपने बेटे की पसंद पर गर्व है। उसी के कहने पर यह शादी सादे तरीके से रचाई गई है। अक्षय का कहना है कि जितना एक विवाह में खर्च होता है, उतने पैसे में तो न जाने कितनी लड़कियों का विवाह हो सकता है। इसलिए उसने निर्णय लिया है कि वो अपनी तरफ से एक बड़ी धनराशि गरीब लड़कियों के सामूहिक विवाह के लिए दान देगा।
यह खबर सुनकर अभिजीत का परिवार बहुत गर्व महसूस करता है अक्षय पर और अक्षय के जय-जयकार के नारे लगने लगते हैं। सान्वी समझ जाती है उसके और अक्षय के विवाह के पीछे का राजनितिक समीकरण।
यूँ तो शरवरी भी सान्वी और अक्षय की शादी से खुश होती है , लेकिन उसे अभिजीत का सिद्धि से हंस-हंसकर बात करना खटक रहा होता है। सिद्धि से बात करते हुए अभिजीत के चेहरे पर एक अलग ही ख़ुशी दिख रही होती है, जो शरवरी को अंदर ही अंदर परेशान कर रही होती है।
विवाह संपन्न होने के बाद सभी पुणे वापिस लौट जाते हैं। पुणे वाले घर में सान्वी का गृह प्रवेश बड़ी ही धूमधाम से होता है। सभी रस्मों के पूरा होने के बाद जगताप पाटिल, सिद्धि, अक्षय और सान्वी को आराम करने के लिए कहते हैं और खुद भी आराम करने चले जाते हैं।
कमरे में कदम रखते ही अक्षय सान्वी से कहता है ....आखिर तुम्हारा सान्वी अक्षय पाटिल बनने का सपना पूरा हो ही गया।
सान्वी मुस्कुराते हुए कहती है…..तुम्हारा साथ किसी सपने से कम थोड़ी न है मेरे लिए। जिस दिन तुमने मुझे अजित से बचाया था, मैं तो उसी दिन से तुमसे प्यार करने लगी थी। तब तो मुझे मालूम भी नहीं था कि तुम एक राजनेता के बेटे हो।
अक्षय सान्वी को अपनी बांहों में खींचते हुए कहता है…..सच सान्वी?
हाँ, अक्षय….
सान्वी को दुल्हन के रूप में देखकर अक्षय सब कुछ भूल गया था, उसके जूस में गोली मिलाने वाली बात भी। इस वक़्त उसे सान्वी के अलावा कुछ और सूझ ही नहीं रहा था। वो सान्वी के जैसे ही और करीब जाने की कोशिश करता है, सान्वी उसे दूर हटने के लिए कहती है।
अब तो हमारी शादी हो गयी है, अब तुम क्यों मुझे दूर हटने के लिए कह रही हो?
अक्षय क्योंकि उस दिन के बाद से तुमने मुझसे बात करना बंद कर दिया था, मेरे भाई को इतना घटिया मैसेज भेजा था और उस पर अगर मैं शादी के लिए कोशिश न करती तो हमारी शादी कभी होती ही नहीं। यह कहते हुए सान्वी अक्षय के गले से लगकर रोने लगती है।
सान्वी के दुबारा करीब आते ही अक्षय के दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं और वो उसे चुप करवाते हुए कहता है कि उससे गलती हो गयी, वो उसे माफ़ कर दे और आज की रात सारी शिकायतें भुलाकर एक नई जिंदगी की शुरुवात करे।
सान्वी मन ही मन खुश होती है यह सोचकर कि आखिर उसने अक्षय से उसके किए की माफ़ी मंगवा ही ली। उधर अक्षय यह सोच रहा होता है कि एक माफ़ी मांगने से उसे सान्वी का साथ मिलता है तो वो ऐसी सौ माफियां माँगने के लिए तैयार है। सान्वी में गजब का आकर्षण था, जो अक्षय को पागल कर रहा था। सब अपनी-अपनी खुशवहमी में खुश थे।
सान्वी अपने ससुराल में बहुत खुश होती है। यहाँ घर में हर छोटे-बड़े काम करने के लिए नौकरों की फौज होती है। घर में सब उसे सान्वी ताई कहकर बुलाना शुरू कर देते हैं। बाहर जाने के लिए अलग गाड़ी, पहनने के लिए महंगे कपड़े और घर के काम निपटाने के लिए नौकर, सान्वी की तो ऐश ही ऐश थी। एक शाम वो अपने कमरे में फिल्म देख रही थी, तभी कमरे में नौकर आता है और कहता है….सान्वी ताई, आपको लाइब्रेरी में बड़े साहेब ने बुलाया है।
सान्वी हड़बड़ाते हुए फटाफट लाइब्रेरी में पहुँच जाती है।
जी बाबा, आपने बुलाया था?
हाँ, सान्वी बेटा क्या कर रही थी?
कुछ नहीं बाबा, फिल्म देख रही थी।
अच्छा है, तुम्हें यहाँ इतना आराम करने को मिल रहा है, अपने बाबा के घर तो काम करते-करते थक जाती होंगी?
नहीं, मैं सिर्फ आई की मदद ही करती थी, बाकी सारा काम तो आई करती थी।
खाना बनाना तो सिखाया होगा आई ने?
हाँ, सीखाया है।
ठीक है तो फिर आज रात के खाने की जिम्मेदारी तुम्हारी। मटन भाखरी बना लेना, अक्षय को पसंद है।
जी बाबा...
वैसे अक्षय क्या कर रहा है?
वो सो रहे हैं।
देखो सान्वी, अक्षय अब कुंवारा नहीं है, शादीशुदा है। उसे उसकी ज़िम्मेदारी का एहसास दिलाओ। कल सुबह नौ बजे जनता दरबार है। मुझे अक्षय और तुम वहाँ मौजूद चाहिए। कल के जनता दरबार के लिए, अपने और अक्षय के लिए छोटा सा भाषण तैयार करो। सुबह बोलने से पहले मुझे दिखा देना।
जी बाबा…
सान्वी लाइब्रेरी से सीधा रसोई में आ जाती है और रात के खाने की तैयारी करने लगती है। बीच में समय मिलने पर वो भाषण भी लिखकर रख देती है। रात को सभी उसके खाने की तारीफ करते हैं। वो काम खत्म करने के बाद जगताप पाटिल को भाषण दिखाने के लिए जाती है।
जगताप पाटिल उसके लिखे हुए भाषण की तारीफ करते हैं और उसे अक्षय को यह भाषण याद करवाने के लिए बोलते हैं।
वो मन ही मन सान्वी से कहते हैं…..यहाँ रहना है तो काम तो करना पड़ेगा सान्वी, मुफ्त में रोटियां तोड़ने को नहीं मिलेंगी।
सान्वी कमरे में आती है तो अक्षय उसका इंतज़ार कर रहा होता है। उसे अपनी बाहों में लेते हुए बोलता है….कितनी देर से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था, कहाँ गईं थी?
बाबा के कमरे में उन्हें भाषण दिखाने, शाम को उन्होंने लिखने के लिए बोला था। यह मुझे और तुम्हें सुबह जनता दरबार में बोलना है।
ओह! सान्वी अभी तो हमारी शादी हुई है और बाबा अभी से इन सब कामों में फंसा रहे हैं।
अक्षय ज़रा सोचो, बाबा के रहते-रहते तुम्हें उनकी तरह एम एल ए बनना है और फिर मंत्री। उनकी राजनीतिक धरोहर के तुम ही तो मालिक हो और हमारे होने वाले बच्चे। जब तुम मंत्री बन जाओगे तो तुम्हारा रुतबा कितना बढ़ जायेगा समाज में। जिस रास्ते से तुम्हारी गाड़ी निकलेगी, उस रास्ते से बाकी गाड़ियों की आवाजाही रोक दी जायेगी। एक तुम्हारे फोन करने से बड़े से बड़े काम हो जायेंगे हमारे।
अगर तुमने राजनीति में ध्यान नहीं दिया तो बाबा की सारी सत्ता सिद्धि ताई और जिनकी उनसे भविष्य में शादी होगी, उसके पास चली जायेगी। सिद्धि ताई तो गरीबों में सब लुटा देगी, फिर हमारे पास क्या बचेगा? सोचो ज़रा…..
तुम ठीक कह रही हो सान्वी, इस नजरिये से तो मैंने सोचा ही नहीं था। भाषण तो मैं याद कर लूंगा लेकिन उसके बदले में मुझे क्या मिलेगा?
पत्नी का प्यार….
यह सुनकर अक्षय खुश हो जाता है और झट से भाषण याद कर लेता है।
अक्षय सान्वी के प्यार में इस कदर डूब चुका था कि सान्वी की हर बात उसे सही लगने लगी थी।
❤सोनिया जाधव
Renu
31-Aug-2022 01:47 PM
👍👍
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shweta soni
31-Aug-2022 09:15 AM
Behtarin rachana
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Pratikhya Priyadarshini
30-Aug-2022 01:40 AM
Achha likha hai aapne 🌺🙏
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