बुलबुल
बुलबुल
*******
मेरे घर के तरुवर पर बैठी बुलबुल मुझसे बोली।
तरुवर पर मेरे बच्चे हैं मत छूना तुम मेरी खोली।।
खाना खिला रही हूं मै मां का कर्तव्य निभाती।
अभी तो वो छोटे बच्चे हैं उड़ना उन्हें सिखाती।।
सीख जायेंगे जब वो उड़ना खोली खाली कर देंगे।
वापस लौट नहीं आयेंगे गगन में उड़ा करेंगे।।
मैं अपना कर्तव्य निभा कर खाना उन्हें खिलाती।
जीवन में कैसे जीना है उड़ना भी उन्हें सिखाती।।
मेरे पास नहीं धन दौलत जो लौट कर वो आयेंगे।
स्वयं खोज कर दाना पानी अपना जीवन काटेंगे।।
स्वार्थ नहीं है मेरे मन में निस्वार्थ मैं सेवा करती।
चाह नहीं बच्चों से कुछ अपना पोषण मैं करती।।
मानव तो है स्वार्थी प्राणी है स्वार्थ से बच्चे पाले।
भूल गए यदि बच्चे तो उनको फिर कौन सम्हाले।।
ईश्वर पर विश्वास करो जैसे हम पक्षी जन करते।
निस्वार्थ भाव से बच्चे पालो प्रभु सबकी रक्षा करते।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर
# नाॅन स्टाॅप कविता।
Supriya Pathak
17-Sep-2022 11:15 PM
Achha likha hai 💐
Reply
शताक्षी शर्मा
03-Sep-2022 02:59 AM
Nice
Reply
आँचल सोनी 'हिया'
01-Sep-2022 11:30 PM
Achha likha hai aapne 🌺🙏
Reply