V.S Awasthi

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मधुशाला

मधुशाला
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अब तक मैं गया ना मधुशाला 
ना मिल पाई कोई हाला
अधर भी मेरे तरस रहे हैं
छूने को एक मधु प्याला
सुन मैंने भी रखा था
मधुशाला प्रेम कराती है
दुश्मन को दोस्त बनाती है
बिछुड़ो को सदा मिलाती है
जाति धर्म से दूर रहे
धर्मो को एक कराती है
गीदड़ को सिंह बनाती है 
अर्थव्यवस्था ठीक कराती है
सरकारों को भी चलाती है
दु:ख में साथ निभाती है
खुशी में मौज बढ़ाती है
ईश्वर की बड़ी नियामत है
ईश्वर पर भी चढ़ जाती है
क्या काली क्या भैरव बाबा 
उनके भी मन को भाती है
पर मै अभी अछूता हूँ
गया ना अब तक मधुशाला
नहीं मिली कोई हाला
अधर भी मेरे तरस रहे हैं
छूने को एक मधु प्याला
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कल्यानपुर कानपुर

# नाॅन स्टाॅप कविता 

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4 Comments

Supriya Pathak

17-Sep-2022 11:14 PM

Achha likha hai 💐

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Achha likha hai aapne 🌺🙏

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shweta soni

01-Sep-2022 05:25 PM

बेहतरीन रचना 👌

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