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भागता जीवन

भागता हुआ जीवन


शालिनी आज थोड़ी परेशान थी बस मन ही मन सोच रही थी कहीं ऐसा तो नहीं की बेटी के जन्म के पश्चात अन्य लोगों की भांति उसका पति और ससुराल के अन्य लोग दुखी तो नहीं है उसका ऐसा सोचना ठीक भी था क्योंकि अब तक उसकी बात अपने पति से न हो सकी थी।
वह इसी उधेड़बुन में बैठी थी आखिर क्या वजह है जो नैमेष ने अब तक उससे बात नहीं की । इतना ही नहीं वह उसको और अपनी नवजात बच्ची दोनों को छोड़कर गांव चला गया और एक बार भी बात करना या शालिनी से पूछना आवश्यक नहीं समझा कहने को तो शालिनी अपने मायके में थी जहां उसे कोई समस्या नहीं थी सभी उसका ध्यान रख रहे थे फिर भी इस नाजुक समय में उसको नैमेष की आवश्यकता थी। इस बात से अनजान नैमेष गांव चला गया था, कुछ आवश्यक कार्य की वजह से और यहाँ पर शालिनी के पिता ,माँ और भाई ने उसे पूरा आश्वासन भी दिया था कि, "वह चिंता ना करें" वह शालिनी का और नवजात बच्ची का बहुत ध्यान रखेंगे। करीब चार दिनों बाद नैमेष और शालिनी की बात हुई फोन पर और शालिनी ने मन में उठते सवालों को नैमेष के सम्मुख रख दिया तब नैमेष ने बताया उसका गांव जाना अत्यंत आवश्यक था और वह शालिनी को इन हालात में परेशान नहीं करना चाहता था इसीलिए नहीं बताया अब शालिनी थोड़ी आश्वस्त हुई थी परंतु अभी अब भी उसके मन में अपने ससुराल मेंअन्य लोगों के प्रति संदेह था जो नैमेष से बात करने के पश्चात और सासू माँ की खुशी को जानकर दूर हो गया।वो मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद भी देने लगी कि उसे इतनी सुन्दर ससुराल मिली जहाँ सभी उसकी बेटी के जन्म से प्रसन्न और खुश थे ।और वक्त के साथ उसका अपने परिवार के प्रति समर्पण और भी बढ़ता गया जिसका परिणाम यह हुआ कि आज वो न केवल अपने मायके में बल्कि ससुराल में भी सबकी लाडली बन गयी थी।
   यादों के झरोखे में शालिनी आज पुनः थी जब वो दुल्हन बन अपने ससुराल पहुंची थी कहाँ वो शहर में पली बढ़ी और अचानक से गाँव में जा पहुँची थी और अब उसे समझ ही नहीं आ रहा था वो क्या करे कहाँ उसने बहुत बड़े बड़े सपने संजोए हुए थे आज सब एकबार में ही लगा जैसे मिट्टी में मिल गए हों लेकिन अपने मन के भावों को मन में ही समेटे वो कमर कस चुकी थी किसी भी हालत में वो अपने ससुराल वालों के दिल में जगह बना लेगी और पुनः अपने सपनों को साकार करने में जुट जाएगी।आज उसे गर्व का आभास हो रहा था अपने पति नैमेष और ससुराल में सभी लोगों पर वो सोचने को मजबूर हो गयी थी । शहर से ज्यादा गाँव में लोगों की मानसिकता अधिक गहरी है और लिंग भेद वहाँ कम ही है अपेक्षाकृत शहरों के। जैसा कि उसने अपनी पढ़ाई के दौरान महसूस किया था।


      स्वरचित एवं मौलिक रचना

            अनुराधा प्रियदर्शिनी
            प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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18 Comments

Behtarin lekhan

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Sadhna mishra

07-Sep-2022 01:44 PM

Behtarin rachana

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Mithi . S

07-Sep-2022 12:28 PM

Behtarin lekhan

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