दरकार
कविता = ( दरकार )
निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार !
पेट को रोटियों की है दरकार !!
खाली ख़ज़ाना नहीं चलती सरकार !
भूखे पेट भजन कैसे होए मेरे यार !!
सब कुछ बिकता है यहाँ !
यह दुनिया है एक बाज़ार !!
खाली जेब यहाँ कुछ ना मिलता !
बिन पैसे रिश्ते भी हैं। यहॉं बेकार !!
निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार !
पेट को रोटियों की है दरकार !!
पेट भरा जग हरा !
हुआ चाँद का दीदार !!
कहीं सेवा के नाम पर !
बोटियों के तलबगार !!
कहीं भूख से बिलखता बच्चा !
कहीं रोटियों का अंबार !!
सेवा के नाम पर सजा बाज़ार !
सच बोला मैं ग़द्दार !!
निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार !
पेट को रोटियों की है दरकार !!
वाह रे मेरी दिल्ली सरकार !
सबको दे दिया रोज़गार !!
दिल्ली नागरिक सुरक्षा भर्तियों की भरमार !
अब न है कोई बेकार !!
एक रोटी टुकड़े हज़ार !
छिन - छानकर खालो यार !!
यह है आपकी सरकार !
टुकड़े फेंको बेड़ा पार !!
निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार !
पेट को रोटियों की है दरकार !!
कोरोना योद्धा का मिला सम्मान!
कोरोना काल में लगा दी जान !!
कोरोना को दिया पछाड़ !
कोरोना से न मानी हार !!
निष्काम सेवा करी अपार !
अब रोड पर है परिवार !!
कोरोना योद्धा बेरोज़गारी से रहें हैं हार !
अब कब जागेगी सरकार !!
निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार !
पेट को रोटियों की है दरकार !!
( विपिन बंसल )
Seema Priyadarshini sahay
03-Sep-2022 02:25 PM
बेहतरीन
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Gunjan Kamal
03-Sep-2022 10:26 AM
बहुत खूब
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Abhinav ji
03-Sep-2022 09:13 AM
Very nice👍
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