लेखनी कहानी -02-Sep-2022 राधेश्याम का शहरी जीवन-भागता हुआ जीवन

प्रतियोगिता हेतु कहानी
राधेश्याम का शहरी जीवन/भागता हुआ जीवन

यह कहानी एक मध्यमवर्गीय परिवार की है, जिसके मुखिया का नाम राधेश्याम था। एक समय था कि इस समाज में इस संसार में बड़ी शांति हुआ करती थी। ना तो ज्यादा सुख सुविधाएं थी, और ना ही ज्यादा पैसा। परंतु उस जमाने में परिवार के लोग बहुत शांति पूर्वक जीवन जिया करते थे। अब लोगों के पास सुख सुविधाएं बढ़ गई हैं, पैसा भी बढ़ गया है।और उन सब के बढ़ने से जीवन एक मशीन की तरह हो गया है, किसी भी इंसान के पास समय नहीं है, अपने परिवार के लिए, अपने बच्चों के लिए, अपने घर के लिए, अपने माता पिता के लिए, मनुष्य एक भागम भाग की जिंदगी जिए जा रहा है। देर से सोना सुबह जल्दी उठ कर तैयार होना। तैयार होकर ऑफिस निकल जाना।ऑफिस में दिन भर काम करना और शाम को फिर वही भागमभाग। बस पकड़ना बस पकड़ घर आना घर आकर फिर खाना पीना खाना और सो जाना। काम की मार इतनी बढ़ गई है । कि दो घड़ी राधेश्याम को परिवार के साथ बैठकर बात करना मुनासिब नहीं हो पाता है।

गांव में अभी भी जीवन बसता है, गांव में अभी भी उतनी भागम भाग नहीं है। चारों तरफ हरियाली है,ताजी हवा है, और वातावरण में शांति है,लोग एक दूसरे से बात करते हैं। एक दूसरे से प्यार करते हैं। एक दूसरे के सुख दुख में भागीदारी करते हैं । परंतु शहर में ऐसा कम ही संभव हो पाता है। परंतु फिर भी लोग गांव से शहर की ओर दौड़ रहे हैं, बच्चे पढ़ने के लिए, नौकरी करने के लिए, गांव छोड़ छोड़कर गांव से पलायन कर शहर की ओर भाग रहे हैं। जबकि गांव का वातावरण अभी भी शुद्ध हवा से भरा हुआ है,जो कि शहरीकरण में संभव नहीं हो पाता है।

शहरी जिंदगी में तो पैसा कमाने की होड़ में राधेश्याम और उसकी पत्नी सीता लगी हुई थी। घर में कार होनी चाहिए, ए.सी.  होना चाहिए ।
सारी सुख सुविधाएं घर में होनी ही चाहिए, और उन सुख-सुविधाओं को लाने के लिए पैसा चाहिए। उस पैसे कमाने की होड़ में जिंदगी का जैसे कचूमर निकला जा रहा है ।
पति-पत्नी दोनों घर से बाहर निकल कर नौकरी करते हैं, सबसे ज्यादा काम की मार तो महिलाओं पर पड़ती है। वह घर में और बाहर दोनों जगह काम करती हैं, तो राधेश्याम की पत्नी सीता का काम तो दोगुना हो जाता था। उनको सुबह 4:00 बजे उठकर सारे घर का खाना पीना बनाकर  सारा काम निपटाना होता था, जैसे कि वह समय से ऑफिस जा सके। और ऑफिस जाकर ऑफिस का काम करना होता था, ऑफिस का काम निपटा कर वह जैसे तैसे घर पहुंचती ,तो घर पहुंचकर फिर किचन उनका इंतजार कर रहा होता है , पूरा फैला हुआ किचन देखकर उन पर क्या गुजरती होगी। सोच कर देखिए, कि पुरुषों से ज्यादा काम तो महिलाओं पर पड़ता है। परंतु वह उफ ना करके उस फैले हुए किचन को चुपचाप जल्दी-जल्दी समेट कर सभी के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम कर खाने में जुड़ जाती थी।
 उसके बाद खा पीकर वह दो घड़ी चैन से बैठने का समय नहीं पाती थी,क्योंकि उतना करते-करते सोने का समय हो जाता था। अब वह किसी के साथ बात करे,या अपना समय अपनी नींद पूरा करने में लगाएं। उनके सामने बड़ी समस्या होती है‌। उसके बाद भी समस्याएं वहां के वहीं रहती हैं।घर काम नौकरी बच्चे परिवार सभी के बीच इंसान बंट जाता है, और जिंदगी की भागमभाग में इतना व्यस्त हो जाता है। कि समय निकलता जाता है। उसे पता भी नहीं चलता, कब वह जवानी से बुढ़ापे की ओर बढ़ लेता है, एहसास भी नहीं हो पाता, बच्चे बड़े हो जाते हैं, और एक दिन जब कभी भी थोड़ा समय मिलता है। और बैठकर सोचता है, तो लगता है। कि 20 साल का लम्बा अंतराल ऐसे ही गुजर गया, जो पता भी नहीं चला, क्योंकि जिंदगी की भागमभाग इतनी ज्यादा थी, यह सोचने और समझने का भी टाइम नहीं मिला। कि राधेश्याम और सीता कुछ सोच पाते, बस जिम्मेदारी जिम्मेदारी जिम्मेदारी! बच्चों को पढ़ाना लिखाना सेटल करना इसी में पूरा जीवन निकल गया।और समय जब मिला, तब अपना शरीर निढाल हो गया। जो कुछ करने लायक नहीं रह जाता,उस समय इन सभी बातों को सोच कर उसे लगता है, कि यह सब भागता हुआ जीवन अब थमने लगा है, और यह समय आते आते जीवन की शाम ढलने लगती है। बच्चों की जिम्मेदारी निभाकर जिंदगी की भाग्य भाग से दूर हो राधेश्याम और सीता चैन की जिंदगी जीना चाहते थे। और अपने बच्चों के साथ खुश थे।

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्व रचित मौलिक व अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।

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17 Comments

Behtarin lekhan

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Sadhna mishra

07-Sep-2022 01:44 PM

Behtarin rachana

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Mithi . S

07-Sep-2022 12:29 PM

Shandar rachana 👌

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