लेखनी कहानी -04-Sep-2022 प्रतियोगिता के लिए कविता
हार नहीं मानूँगी
हार नहीं मानूँगी कभी भी
चाहे जितनी भी मुश्किल हो
राहों में चाहे शूल बिछे हों
उठती हो या ज्वालामुखी
अंगारों पर चलना पड़े तो
हँसकर ही है कदम बढ़ाना
मन मरूथल सा प्यासा है
मंजिल पाने को व्याकुल
मोह पाश में नहीं बँधेगा
नित पग आगे बढ़ते जाना
दृढ़ संकल्प लिया है मैंने
हार नहीं मानूँगी कभी भी
जीवन एक संघर्ष हमेशा
जिसमें होंगे तुफां हजारों
कश्ती किनारे पर ले जाना
कठिन चुनौती बीच मझधार
हौसला जो मन भीतर में
मार्ग प्रशस्त कर जाएगा
हार नहीं मानूँगी कभी भी
स्वरचित एवं मौलिक रचना
अनुराधा प्रियदर्शिनी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
shweta soni
05-Sep-2022 03:32 PM
Nice
Reply
नंदिता राय
05-Sep-2022 02:33 PM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌
Reply
आँचल सोनी 'हिया'
05-Sep-2022 11:32 AM
Achha likha hai 💐
Reply