Sarfaraz

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स्वैच्छिक

🌹🌹🌹* ग़ज़ल * 🌹🌹🌹

दीजिए मेरे रश्क - ए - क़मर दीजिए।
जामे उल्फ़त मुझे बेख़त़र दीजिए।

आपको हर ख़ुशी हो मुबारक सनम।
ग़म हैं जितने भी सारे इधर दीजिए।

इक गुज़ारिश है जानाँ मुझे आप अब।
प्यार ही प्यार शाम ओ सहर दीजिए।

हाथ में हाथ दे दीजिए आप बस।
कब कहा मैंने लअ़ल ओ गुहर दीजिए।

आप के तो किसी काम की भी नहीं।
यह जवानी मिरे नाम कर दीजिए।

डालकर आप उल्फ़त भरी इक नज़र।
मेरा दामन भी ख़ुशियों से भर दीजिए।

आना मुम्किन नहीं है अगर आपका।
चलिए फिर फोन पर ही ख़बर दीजिए।

मसअले जिससे सुलझाले अपने फ़राज़।
या इलाही वो ज़ह्न ओ हुनर दीजिए।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

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8 Comments

Swati chourasia

11-Sep-2022 08:14 AM

Very beautiful 👌

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Waahhhh Bahut hi सुन्दर सृजन और अंतिम शेर बहुत ही उम्दा है और बहुत ही गहरे भाव लिए हुए है Outstanding

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Abhinav ji

07-Sep-2022 08:06 AM

Very nice👍

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