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लेखनी प्रतियोगिता -07-Sep-2022 स्त्री की आकांक्षा

स्त्री की आकांक्षा


कोमल मन की स्वामिनी,
हृदय सागर से भी गहरा।
जब-जब भी बात होती है 
 नारी तुम्हारी  क्या इच्छा
सोच  में मैं  पड़  जाती हूँ
आखिर क्या मेरी ख्वाहिश
नन्ही कली खिल पुष्प बनी
ख्वाहिश  देव  शरण  चढ़े
प्रकृति हूँ बिखर जाना चाहूँ
बिखर कर भी चमन महके
घर की नींव में समर्पित है
मेरी इच्छा की हर एक ईंट
नींव  अगर  मजबूत  रहे
महल सा विस्तार है उसका
नारी मन कोमल बहुत ही
बस यही सहजता हमेशा हो
इतनी सी आकांक्षा है मेरी
अस्तित्व को मेरे पहचान मिले
दया भाव की अधिकारी नहीं
मेरे समर्पण का मान रहे


स्वरचित एवं मौलिक रचना

    अनुराधा प्रियदर्शिनी
    प्रयागराज उत्तर प्रदेश


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10 Comments

Reena yadav

08-Sep-2022 04:12 PM

👍👍

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Milind salve

08-Sep-2022 10:34 AM

शानदार

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👌🏼 👌🏼 👌🏼 लाजवाब

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