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लेखनी प्रतियोगिता -10-Sep-2022

ऐ ज़िंदगी कुछ मेरी भी सुन...

अरमानों की छाऊ में कुछ देर बैठा ही था,
बादलों का यूं रूठ जाना और फिर वहीं धूप आ जाती हैं।

एक परिंदे सी है तु, बैठकर तुझसे करू जो गुफ्तगू,
करीब जो जाता हूं, कहती नही कुछ और उड़ जाती है।

देखे नही थे तेरे ये जो अलग अलग रंग है,
छू लूं तुझे तो और ज्यादा तु घुल जाती है।

मेरी ख्वाहिशों को आसमान में समेट कर जो रख देता हूं,
जरा सी ठोकर जो लगती हैं तो गिरते तारों सी टूट जाती हैं।

कभी किनारों पर कदमों के निशान बना दिया करता था l,
सीपें, रेत, निशान पैरों के लहरों के संग साथ में बहा ले जाती है।

जाता हुं कहीं और मैं, कहीं और तु जाती हैं,
रास्तें कहीं और ले जाते है और मंजिलें पीछे छूट जाती है।

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10 Comments

उम्दा सृजन,,,, छांव,,, तू,,, हूँ,,, जाती हैं आदि सही करें

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Dr.Strange_Writes

11-Sep-2022 10:46 AM

Ok sir Thanks for the comment all of you have a great inspiration from you all.

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Ajay Tiwari

11-Sep-2022 09:28 AM

Nice

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Abhinav ji

11-Sep-2022 08:40 AM

Nice

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