लेखनी कहानी -06-Sep-2022... रिश्तों की बदलतीं तस्वीर..(5)
रमादेवी अपने कमरे में बैठी... बाहर हुई बातचीत के बारे में सोच सोचकर दुखी हो रही थीं....। वो समझ नहीं पा रहीं थीं की आखिर क्यूँ उसका बेटा उसे बाहर ले जाने में शर्म महसूस करता हैं..।
एक वक्त वो भी था जब उसका बेटा अपनी माँ के सिवा कही नही जाता था...।
पहली बार जब रमादेवी उसे स्कूल छोड़ने गई थीं तभी भी उसने रो रोकर पूरा स्कूल सिर पर उठा लिया था.. । रमादेवी अतीत के ऐसे अनगिनत क्षणों में खो गई....।
मेले में सुनील का हाथ छुट जाने पर रोना... बस की भीड़ में गले से लगकर बैठना... हर रोज़ स्कूल से लौटते ही दौड़ कर सीने से लग जाना...।
हर जन्मदिन पर गोदी में बैठकर देर रात तक कहानियाँ सुनते रहना... और अपने पापा से ये कहना की आज मेरा जन्मदिन है आज तो मैं पूरी रात मम्मी के साथ बातें करुंगा...।
लेकिन कभी भी कही भी रमादेवी को ऐसा लगा ही नहीं की सुनील शर्म महसूस करता हो....। हां ये बात और थी कि उम्र बढ़ने पर वो धीरे धीरे थोड़ा दूर हो रहा था पर शर्म....। आखिर वो शर्म क्यूँ महसूस करेगा..।
सोचते सोचते रमादेवी का सिर दुखने लगा...। वो बाथरुम में रखी पानी की बाल्टी में अपना प्रतिबिंब देखने लगी.... और फिर से सोचने लगी.... क्या सच में मैं बहुत अजीब दिखती हूँ...।
विचार करते करते कब शाम ढल गई पता ही नहीं चला..। लेकिन रमादेवी को जवाब अभी भी नहीं मिला..। वो गुमसुम बैठी खिड़की से बाहर झांकने लगी.. । उस खिड़की से सिर्फ एक सुनसान सड़क दिखती थीं..। ना बंदा ना बंदे की जात...। रात को सिर्फ आवारा कुत्ते वहाँ आकर बैठते थे..।
उसी वक्त सलोनी भीतर आई और बोली :- दादी.... देखो मैं आपके लिए क्या लेकर आई....। (हाथ में रखें पैकेट से एक हल्के पीले रंग की साड़ी निकालते हुए) ....। टन्न टना्..... कैसी हैं दादी....!
बहुत प्यारी हैं परी.... लेकिन मैने मना किया था ना बेटा.. ।
अरे आपकी सलोनी की सगाई हैं... ऐसे कैसे नहीं लाती..। अब मैं चमकूंगी तो मेरी दादी भी तो चमकनी चाहिए ना....। अरे अभी तो मैं आपका फेशियल भी करवाने वाली हूँ.... एक दम यंग दिखोगी फिर आप....।
मैं ऐसे ही अच्छी नहीं लगती हूँ क्या परी.. !
क्या दादी.. आप ऐसा क्यूँ बोल रहे हो... आप तो हमेशा अच्छे लगते हो दादी.... मैं तो बस इसलिए कह रहीं थीं की फेशियल से थोड़ा ओर निखार आ जाएगा...। आपको बुरा लगा क्या दादी...!
अरे नहीं बेटा.... मैं तो ऐसे ही पूछ बैठी...। अच्छा चल अब ज्यादा सोच मत यह बता तु खुद के लिए क्या लाई....!
कुछ नहीं दादी...। सिर्फ मेकअप का थोड़ा सामान....।
क्यूँ...!
मेरे लिए कुछ समझ नहीं आ रहा था दादी.... आपके और पापा के लिए कपड़े लाई...।
ओहह.... फिर अब क्या करेगी..!
कल मैं मम्मा और विनी के साथ शहर जा रहीं हूँ दादी... वहाँ से ले आऊंगी...।
ठीक है बेटा..
तभी सुजाता के बुलाने पर सलोनी अपनी दादी के गले लगती हुई वहाँ से चलीं गई....।
कुछ देर बाद ही सुजाता चाय का कप लेकर भीतर आई और खिड़की पर रखते हुए बोली :- ले... चाय पी ले.. .और सुन वो साड़ी कहाँ हैं जो सलोनी देकर गई थीं....! वो मुझे वापस कर ... पूरे हजार रुपये की हैं.... संमधियो को.... रिश्तेदारों को देने में काम आ जाएगी..। वैसे भी इन्होंने मना किया हैं आपके चलने के लिए... सगाई में... । जब तुझे जाना ही नहीं हैं तो साड़ी का क्या करेगी...!
वो कबड्ड में रखी हैं बहू ले लो....। लेकिन बहू अगर परी ने जिद्द की चलने के लिए तो...।
उसकी फिक्र तु मत कर... ये अपने आप बात कर लेंगे सलोनी से...। ओर खबरदार जो तुने उसे कुछ भी बताया तो..। (सुजाता कबड्ड से साड़ी निकालते हुए) .....। इस लड़की का भी ना दिमाग खराब हो गया हैं....। इतनी मंहगी साड़ी लाने की जरूरत क्या थी... जरुर तुने ही पट्टी पढ़ाई होगी...। इस उम्र में भी तुझे सजना संवरना हैं...। कुछ तो शर्म करो... बच्ची को बहकाकर अपना उल्लू सीधा करवाती हो....।
बड़बड़ करते हुए सुजाता साड़ी लेकर वहाँ से चली गई...। जाते जाते उसके मुंह से निकला.... बस कुछ महीने ओर.... निकल जाए...।
आखिर क्या होने वाला था कुछ महीनों बाद..!
जानते हैं अगले भाग में..।
Palak chopra
12-Sep-2022 09:21 PM
Bahut khoob 🙏🌺
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Priyanka Rani
12-Sep-2022 04:34 PM
Nice post
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Kaushalya Rani
12-Sep-2022 03:38 PM
Very nice
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