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लेखनी प्रतियोगिता -12-Sep-2022 प्रतियोगिता के लिए "तुम्हारा हाथ थाम"

तुम्हारा हाथ थाम


तुम्हारा हाथ थाम कर कदम  मैंने  बढ़ाया था

मुझको क्या खबर तुम  मजबूर होके आए थे

अपने मन की उलझनों को क्यूं ना बताया था

जो पहली दफा तुम हमसे मिलने को आए थे


आँखो में सुनहरे सपने मैंने भी तो सजाया था

सप्तपदी के वचनों को  संग में ही दुहराया था

कैसे तुम भूल गए  जन्मों  जनम का  नाता है

मेरी इस दुनिया  के अब  तुम  ही सहजादे हो


माना कि हर घर की रीति नीति थोड़ी अलग है

मैं भी सीख जाऊँगी रिश्ते दिल से  निभाऊँगी

सुबह-शाम की मेरी आदत भी थोड़ी अलग है

जरा समझो आदतें एक दिन में बदलती नहीं


ये भी तो ठीक नहीं तुमको  मेरी  परवाह नहीं

अपनी बगिया को तुम्हारे लिए छोड़ आयी थी

इस गुलशन को संग में सजाने का  इरादा था

जाने कौन बात है  जो  बेरूखी तुम करते हो



  स्वरचित एवं मौलिक रचना


   अनुराधा प्रियदर्शिनी

    प्रयागराज उत्तर प्रदेश





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6 Comments

Gunjan Kamal

14-Sep-2022 03:15 PM

बहुत खूब

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Pratikhya Priyadarshini

13-Sep-2022 06:06 PM

Bahut khoob 💐👍

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Raziya bano

13-Sep-2022 09:43 AM

बहुत खूब

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