Diya Jethwani

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लेखनी कहानी -06-Sep-2022... रिश्तों की बदलतीं तस्वीर..(7)

देर रात अचानक से रमादेवी की आंख खुली... उसने कमरे में खाने के लिए यहाँ वहाँ ढूंढा...। लेकिन कमरे में तो कुछ था ही नहीं..। भूख को शांत करने के लिए रमादेवी ने किचन में जाने का विचार किया लेकिन हिचक और डर की वजह से वो सोच कर वही चारपाई पर बैठ गई....। कुछ देर यहाँ वहाँ टहल कर.... पानी पीकर वो समय काट रहीं थीं....। लेकिन भूख ऐसी चीज़ हैं जिसके लिए इंसान ना जाने क्या क्या कर लेता है...। फिर रमादेवी तो उम्र की उस दहलीज पर थीं जहाँ ज्यादा देर भूखे रहना खतरनाक हो सकता था...। आखिर कार मजबूर होकर ना चाहते हुवे भी रमादेवी आज ना जाने कितने वर्षों बाद कमरे से बाहर जाने की हिम्मत जुटा कर कदम बढ़ाने के लिए आगे बढ़ी...। कमरे का दरवाजा खोलते ही वो जैसे ही एक कदम बाहर की ओर आई.... ऐसा लगा जैसे उसके पैर कंपकंपा रहे हो....। रमादेवी का बैलेंस बिगड़ने लगा... वो गिरने ही वाली थीं की उन्होंने झट से दरवाजे का सहारा ले लिया....। ऐसा शायद कभी नहीं हुआ था की सुजाता खाने रखे बिना चलीं गई हो...। रमादेवी को कभी ऐसे कमरे से बाहर निकलना ही नहीं पड़ता था....। उन्होंने तो अपनी जिंदगी उसी कमरे में बसा ली थीं...। आज बाहर निकलने की वजह सिर्फ भूख नहीं थीं एक पल के लिए रमादेवी शायद उसे बर्दाश्त कर भी लेती....। लेकिन आज रमादेवी अपने भीतर एक विश्वास की लौ जगाना चाहती थीं...। लड़खड़ाते कदमों से रमादेवी धीरे धीरे किचन की तरफ़ आई...।अब तक सब ठीक ही चल रहा था...। रमादेवी ने एक रोटी ली और फ्रिज में रखी थोड़ी सी सब्जी को रोटी के ऊपर ही लगा कर वापस अपने कमरे की तरफ़ जाने लगी..। बर्तन की आवाज़ से बचने और उन्हें वापस रखने की टेंशन की वजह से रमादेवी ने उनका इस्तेमाल नहीं किया...। वो अपने कमरे की तरफ बढ़ रहीं थीं तभी उसके कानो में एक आवाज आई और रमादेवी के कदम वही जम गए......। 


रमादेवी सुनील और सुजाता के बीच चल रहें वादविवाद की कुछ बातों को सुनकर अपने आप को संभाल नहीं पाई और उनके हाथों से लाई हुई रोटी जमीन पर गिर गई....। वो उसे उठाने के लिए झूकी... वापस उठते वक्त पास में रखें टेबल का सहारा लिया तो टेबल पर रखा पानी का जग धड़ाम से गिर पड़ा...। रमादेवी लड़खड़ाते हांफते हुवे फटाफट अपने कमरे में आई.... और डर के मारे रोटी हाथ में लिए ही चारपाई पर आंखें मूंदकर लेट गई...। चद्दर के भीतर उसने रोटी को छिपा दिया...। 

वहीं जग गिरने की आवाज सुनकर सुनील और सुजाता बाहर आए.... बाहर आकर जग जमीन पर देखा तो कुछ समझ नहीं पाए....। यहाँ वहाँ थोड़ी देर नजरें घुमाने के बाद ऐसा सोचकर की शायद बिल्ली आई होगी...... वे दोनों वापस अपने कमरे में जाने लगे...। तभी सुजाता के पैरों पर रोटी में से गिरी हुई सब्जी आई...। 
सुजाता ने सारी लाइटें जलाकर देखा तो उसे समझते देर नही लगी की जमीन पर क्या हैं....। साथ ही वो परिस्थिति को भी भांप गई... और गुस्से से तिलमिलाती हुई रमादेवी के कमरे की तरफ़ बढ़ने लगी.... तभी सुनील ने उसे रोक लिया और कहा की :- अभी जाने दो.... परी घर पर हैं...। बस कुछ दिन ओर सह लो....। 

सुनील हाथ पकड़ कर सुजाता को भीतर ले गया......। 

वहीं काफी देर तक सुजाता कमरे में नहीं आई तो रमादेवी ने आंखे खोली और हाथ में दबाई हुई रोटी का निवाला खाने लगी...। पहला निवाला खाते ही उसके सामने सारी बातें गूंजने लगी...। लेकिन रमादेवी ने अपने मन को पक्का कर लिया था और मन में पहले ही कुछ ठान लिया था...। इसलिए रोटी के साथ साथ आंसुओं को भी पीती गई...। 


आखिर क्या फैसला कर चुकी थीं रमादेवी...? 
जानते हैं अगले भाग में...। 

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10 Comments

Achha likha hai 💐

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Pratikhya Priyadarshini

13-Sep-2022 09:46 PM

Achha likha hai 💐🙏

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Barsha🖤👑

13-Sep-2022 09:35 PM

Nice 👍

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