V.S Awasthi

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जाड़ा

जाडा़
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देखो कितना आया जाडा़
पी लो चाय बना कर काढा़
गुड़ की चाय बना कर पीना
गरमा गरम पकौडा़ लेना
जाडा़ पास  नहीं आयेगा
चाय देखकर भग जायेगा
घर में ओढ़ रजाई बैठो 
दादी, दादा के संग बैठो
मोमफली भी संग रख लेना
उबले गरम सिंघाड़े लेना
जाड़े का मौसम है अच्छा
खाने को मिलता खुब अच्छा
गाजर का हलुआ भी लाना
 आपस में मिल बांट के खाना
गजक का स्वाद भी बडा़ निराला
खाने को मन होता मतवाला 
शाम को पापा जब घर आते
मोमफली और हलुआ लाते
आंगन में बैठ कर आग जलाते
आग ताप कर हम सब खाते
कवि विद्या शंकर अवस्थी पथिक कल्यानपुर कानपुर

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1 Comments

अदिति झा

12-Jan-2023 04:35 PM

Nice 👍🏼

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