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दिल




दिल की अपने कहा करते तेरे दिल की सुना करते,
सुबह-ओ-शाम तेरे पास गरचे हम रहा करते। 

बिछड़ना हम को था लेकिन ये मेरी भी तो ख्वाहिश थी,
गले तुझको लगाकर हम सलीके से विदा करते। 

उठाकर ज़ुल्फ़ गिरानी हो, या निग़ह के तीर चलाने हो,
जो कुछ भी वो करते बस मेरे दिल पे बला करते। 

हाज़ते-वस्ल पर उनको हज़ारों बार मनाने में,
फिर वो मान जाते थे अव्वल-अव्वल मना करते। 

मिरे ज़ुर्में-मुहब्बत को क्या वहशत ही ज़रूरी थी,
'तनहा' की सज़ा में लोगो तुम कुछ तो नया करते।

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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3 Comments

Supriya Pathak

17-Sep-2022 11:28 PM

Achha likha hai 💐

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Raziya bano

17-Sep-2022 09:03 AM

Nice

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Achha likha hai 💐

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