Kavita Gautam

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पुस्तकालय

"पुस्तकालय"

मैं हूं इक पुस्तक
ये जीवन पुस्तकालय
मेरे मन की पुस्तक का
ये जीवन इक संग्रहालय

जब जब इक प्रश्न उठे
मेरे मन की पुस्तक में
मैं ढूंढू तब तब उसको
जीवन रूपी पुस्तकालय में

मन में उठे विचारों की
सीमा कोई नहीं होती
मैं तब तक हार न मानूं
जब तक मिले न संतुष्टि

ये जीवन किसी रहस्य से
कम भी नहीं होता

हर मोड़ पर मिलती है इसमें

जीवन की नई रेखा

हर एक रहस्य की गुत्थी
जब जब सुलझाती हूं
जीवन रूपी पुस्तकालय में
खुद को उलझा ही पाती हूं

मैं तो इक पुस्तक हूं
कुछ ऐसे प्रश्नों की
जिन प्रश्नों का उत्तर
जीवन में ढूंढती हूं

ये रहस्य अनोखा है
जीवन रूपी पुस्तकालय का
हर दिन खुद को एक नई
पुस्तक ही पाती हूं

मन में उठते प्रश्नों का
ना उत्तर मिलता कहीं है
जीवन रूपी पुस्तकालय में ही
इसका उत्तर छिपा कहीं है

जीवन नाम है अनुभव का
और कर्म ही इसका गहना
धीरे धीरे सुलझेगा
मेरी हर पुस्तक का पन्ना

जीवन के पुस्तकालय में
खुद को दूर बहुत पाती हूं
ये ज्ञान का सागर है
इसमें डूबती ही जाती हूं

जितना ही ज्ञान समेटू
उतना कम पड़ जाता है
मेरे जीवन का अध्याय
इक नया फिर खुल जाता है

हर इक अध्याय में खुद को
यूं ढूंढने लगती हूं
जैसे सागर में मोती

कहीं खो सा जाता है


मेरी बिसात क्या है
जो मोती कहलाऊं
जीवन रूपी पुस्तकालय में
कहीं खो ही न जाऊं


बस इतनी सी ख्वाहिश है

जीवन रूपी पुस्तकालय में

खुद को पढ़ती ही जाऊं
बस पढ़ती ही जाऊं।।

कविता गौतम...✍️

#हींदी  दिवस प्रतियोगिता 

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8 Comments

ढूढ़ूं,,,, ढूढ़ने,,, समेटूं होगा जी

Reply

बहुत ही सुंदर सृजन,,, क्या कहने जी,, लाजवाब लाजवाब

Reply

Kavita Gautam

21-Sep-2022 01:24 PM

सुंदर समीक्षाओं हेतु आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏

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