आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022
भाग -4
सिद्धार्थ अपने चारों दोस्त रोशन,राजेश अजय और दीपा को याद कर रहा है उस भयावह रात में अपने साथ अपनी नवविवाहिता साधना के साथ शादी के बाद अपने घर जाते वक्त। वो अनजान हैं ड्राइवर की मौत के बारे में और वही ड्राइवर गाड़ी चला रहा है। दीपा से हुई पहभाग-4ली मुलाकात। उसका कॉलेज में एडमिशन हो जाना फिर पढ़ाई में व्यस्त हो जाना पर होस्टल में उसके रूममेट्स उसे तंग करते जिनसे परेशान हो वो अपना अधिकतर समय लाईब्रेरी में ही बिताता।एक दिन स्टेशनरी शॉप पर किसी ने उसे पीछे से मुक्का मारा।
****
सिद्धार्थ ने पीछे मुड़कर देखा तो दीपा और उसी के साथ राजेश,रौशन और अजय भी थे।
उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा।लगा मुंँह मांँगी मुराद पूरी हो गई।
"यार! पढ़ाकू उस दिन के बाद तूंँ कभी दिखा ही नहीं। हमें तो लगा कैमिस्ट्री लैब में गैस बन कर उड़ गया।" अजय हँसते हुए बोला।
दीपा को देख और पीठ पर पड़े उस मुक्के के स्पर्श से ना जाने सिद्धार्थ को क्या हो गया,उसके दिल की धड़कनें शताब्दी एक्सप्रेस से भी तेज गति से धड़कने लगी।
उस दिन दीपा ने ग्रे कलर की हाफ पैंट और सफेद कमीज पहनी थी।बाल भी खुले उसकी हाफ पैंट तक लटक रहे थे। फिल्म की किसी हीरोइन से कम नहीं लग रही थी।
दीपा जिस तरह से सिद्धार्थ को देख रही थी,शर्म से सिद्धार्थ के गाल लाल हो गए और वो दीपा से नजरें चुराने लगा।
खुद को संभालते हुए सिद्धार्थ ने अपने दोस्तों से कहा,"तुम लोग कहाँ रहते हो यार! हमको तुम सबकी बहुत याद आती है।"
"सबकी... मेरी भी।" दीपा ने सबकी शब्द पर जोर देते हुए सिद्धार्थ से पूछा।
अब चलो सारी बातें यहीं दुकान पर खड़ी होकर करेंगे क्या?"
दुकान दार भी उन्हें घूर कर देख रहा था।
"अपना समान पकड़ो और यहाँ से भीड़ खाली करो।"
दुकान दार को पैसे दीपा देने लगी तो सिद्धार्थ ने मना किया,पर वो नहीं मानी।
" सूद समेत वापस ले लूंगी तुझसे मेरी जान।"
दीपा शायद समझ गई थी कि सिद्धार्थ के पास पैसे कम पड़ गए हैं तभी कुछ समान को वापस कर दिया था यह कहकर कि बाद में दे जाऊंगा।
पाँचों वहाँ दुकान से निकल चलते-चलते एक पार्क पहुंच में गए जहाँ बैठ कर घंटों बातें की।
बातों ही बातों में पता चला कि रोशन और अजय इवनिंग कॉलेज से बी ए पास कोर्स कर रहे हैं, राजेश उसी के कॉलेज से जिसमें सिद्धार्थ पढ़ता है, बीए इंग्लिश ऑनर्स। तीनों एक किराए के मकान में रहते हैं जिसका किराया और खाने पीने का खर्चा आपस में तीनों बांटते हैं।।
"बड़ी हैरानी की बात है राजेश और सिद्धार्थ तुम दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते हो और इन छह महीनों में कभी एक बार भी नहीं मिले।"
अजय ने झुंझलाते हुए कहा।
उस दिन वो फूट फूट कर रोया था अपने दोस्तों के सामने और अपने साथ होते बुरे व्यवहार जो उसके रूम पार्टनर करते थे,कभी उसके कपड़े फाड़ देना,कभी बना बनाया प्रोजेक्ट खराब कर देना,कभी उसकी चाय और नाश्ते खाने को गिरा देना। बहुत तंग करते थे , हमेशा बिहारी कहकर चिढ़ाते थे। वो नहीं रहना चाहता उन लोगों के साथ।
"अरे यार! इसमें रोने की क्या बात है? आ जा अपना बोरिया बिस्तरा लेकर हमारे पास। रूम का किराया भाड़ा 400 रुपए है तीन लोगों में बांटने में हमेशा मैं ही घाटे में रहता हूंँ।कभी ये दोनों 100 -125 रुपए से ज्यादा नहीं देते बाकी मैं ही पूरा करता हूँ।" अजय ने रोशन और राकेश की तरफ देखते हुए कहा।
" सच्ची तुम मुझे अपने साथ रखोगे। मुझे 500 रूपए हर महीने पिताजी भेजते हैं जिसमें हॉस्टल और मेस फीस सब संभालना मुश्किल हो रहा है। ज्यादा पैसों के लिए कहना भी सही नहीं लगता। "
"तुम चारों भूल ही गए हो कि कोई और भी है यहाँ पर।
कहो तो मैं भी अपना बोरिया बिस्तर लेकर तुम्हारे रूम में ही शिफ्ट हो जाऊं।कमरे का पूरा किराया मेरी तरफ से।" दीपा ने चारों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ताली बजाते हुए कहा।
" राम राम ... नहीं ऐसा मत करना मैडम जी।हम लड़कों के साथ आप रहोगी..., , नहीं नहीं।" रोशन अपने दोनों कानों पर हाथ रखते हुए बोला।
अजय ने कहा," माफ करना दीपा, हम चारों अपनी बातों में लग गए।तुम्हारी तरफ ध्यान नहीं दिया।"
" चलो कोई नहीं, तुम चारों बातें करो मैं जरा पार्क का एक चक्कर काट कर आऊं।"दीपा ने अपने हैंड बैग से सिगरेट का पैकेट निकाला और चारों को ऑफर किया।
"नहीं दीपा यह सही नहीं है।अभी हमारी पढ़ने लिखने की उम्र है और उसे हम सिगरेट के धुंए में उड़ा दें। ये शरीर के लिए बहुत नुक्सान दायक होती है। इससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।इसका धुआं फेफड़ों को जला देता है और जो भी इस धुंए के संपर्क में आता है उसके लिए भी ये बहुत हानिकारक है।" सिद्धार्थ एक डॉक्टर की तरह दीपा को बता रहा था।
दीपा उसे एकटक निहार रही थी।
"यार मेरी जान तूँ तो बहुत प्यारा है और फिर इन फालतू बातों पर ध्यान मत दे।ये ले आज एक कश लेकर देख। कुछ नहीं होता इससे। इसमें निकोटिन है जो चाय में भी होती है।ये देख कोई ज़हर नहीं है ये चाय की पत्ती ही है। बस जब भी चाय पीने का मन करे एक कश मार लो।सब थकान दूर और सारे ग़म उड़न छू।"
दीपा ने एक हरे रंग का पैकेट खोलकर उसमें से एक पतला सा पेपर निकाला फिर उसी पैकेट में रखी सफेद पुड़िया खोल उसमें रखी भूरे रंग की सूखी पत्तियों का चूरा लेकर कागज में डाल कर उसे पाइप जैसा आकार दिया। फिर लाइटर निकाल उसे जलाकर एक कश मारा और सिद्धार्थ की तरफ बढ़ा दिया।
" एक बार ट्राई करने में कोई हर्ज नहीं और अब हम बच्चे थोड़े ही हैं। 17-18 साल के हो गए हैं।अब तो हमे वोट देने का अधिकार भी मिलने ही वाला है।भई मैं तो ट्राई करने को तैयार हूँ, बस कोई हमें भी अपने हाथों से ..." राजेश बोला तो अजय ने कहा'
"अपनी ऐसी किस्मत कहाँ जो फ्री की सिगरेट हमें भी मिले।"
" अच्छा बाबा आज तुम चारों के लिए मेरी तरफ से ये संजीवनी बूटी।"
एक अजीब सा जोश आ गया था उस दिन सभी में , किताबों की बातें और उनका ज्ञान कुछ काम नहीं आया और वो सभी कुछ ही समय बाद धूएं के गुबार में समा गए।
अगली सुबह ही सिद्धार्थ ने हॉस्टल से अपना सामान उठाया और पहुंच गया अपने नए आशियानें में।जहाँ उसका स्वागत उसके दोस्तों ने बड़े जोश से किया। यह नया सफर अपने दोस्तों के साथ उसके आने वाले कल में कितनी हलचल मचाने वाला है इन सब से अंजान था वो।
क्रमशः
नोट:(धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है। कहानी में इसको बढ़ावा देने का कोई मकसद नहीं है, ना ही किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना इस कहानी का उद्देश्य है।यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक सिर्फ मनोरंजन और इस उम्र के बच्चों द्वारा की गई गलतियों से सबक देना है।
विनम्र निवेदन है कि अगर आपको यह कहानी पसंद आ रही है तो अवश्य मुझे फॉलो और ही अगला भाग पढ़ने के लिए।)
***********
कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी
##लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता
17.09.2022
shweta soni
20-Sep-2022 12:38 AM
Nice post
Reply
Gunjan Kamal
19-Sep-2022 12:38 PM
शानदार भाग
Reply
Mithi . S
18-Sep-2022 02:41 PM
Shandar rachana 👌
Reply