Sunita gupta

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लेखनी कहानी -18-Sep-2022

सबका कुछ कुछ एक का सब कुछ l
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चाहत के संबंधों की तुरपाई को 
उम्र की चादर से ढकना चाहता हूं l
तुमने रिश्ते निभाए आंसुओं से,
और गम के बोझ तले दब गए l
हमने रिश्ते निभाए संबंधों के 
इसीलिए कुछ पुष्प से खिल गए l 
40 की उम्र के बाद जिम्मेदारियों
की चादर फैल जाती और रिश्ते 
निभाने की होड़ लग जाती हैं l
कहीं समझौते होते  हैं स्वयं से
कहीं संघर्ष होते हैं अपनों से l
कहीं तन्हाई ही मित्र होती है 
कहीं अधिकार होते हैं कुछ पाने को 
कभी श्रंगार होता है,मुझे रिझाने को l
एक दीदार की खातिर प्रतीक्षारत
कहीं अरमान पलते हैं नयनाभिराम 
कहीं सपने संजोते हैं सुबह ओ शाम l
मैं तुमसे यथार्थ और एहसास
कह रहा हूँ अपने मन के l
तुम मुझ में सिर्फ प्रेमी ही 
नहीं तरसती थी,
तुम तलाशती थी मुझमें 
एक पिता जो तुम्हारी 
गलतियों के बाद भी 
तुम्हें उतना ही प्यार दे l
तुम तलाशती थी मुझमें 
एक भाई जो मुश्किलों में 
तुम्हारे साथ अटल खड़ा रहे l
तुम तलाशती थी मुझमें 
एक दोस्त जिसके कंधे पर 
सर रखकर तुम रो सको 
और अपना दुख बांट सको l
तुम मुझमें तलाशती थी 
एक पति जो तुम्हें तुम्हारे 
होने का एहसास दिला सके l
तुम्हारा साथ पाकर वह अपने
आपको भाग्यशाली बता सके l
तुम्हें यह सब प्रभू के आशीष से
स्वयं ही मिला है और एक वाक्य
चरितार्थ हुआ है कि
सबका कुछ कुछ एक का सब कुछ l

सुनीता गुप्ता कानपुर उत्तर प्रदेश 

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2 Comments

Achha likha hai 💐

Reply

Aliya khan

19-Sep-2022 08:15 AM

Mam अपने गलती से कहानी में कविता कर दी है इस्कू एडिट कर के कविता कर दे

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