बांस के फूल
शीर्षक बांस के फूल ,कहानी
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एक गांव मे रमेश का पूरा परिवार रहता था ।बो सब परिवार का भरण पोषण करने के लिए बांस की खेती किया करते थे । लंबे लंबे बांसों मे हरी हरी फूल व पत्तियां से सुशोभित बो डंडा हिमालय पार्वत की तरह अडिग रहता हैं।रमेश बांसों को व उन पर लगे फूलों को हर क्षेत्र मे बेचने का काम करता था ।बहुत ही प्रयोगों में बांस लाया जाता है ।बांसों की कोमल डंडियों से टोकरी ,सुंदर सुंदर फूलदान भी बनाए जाते हैं ।वह भारत के अन्य राज्यों मे बेचने जाया कार्य है।उसमे उसके पूरे परिवार का भरण पोषण हुआ करता है।रमेश बांस केबारे मे पूरी जानकारी जानकारी भी देता है। रमेश बताता है की बांस का तना खोकला होता है। अर्थात बांस के ऊपरी परत बहुत ही मजबूत लेकिन वह अंदर से खाली रहता है। लेकिन वर्तमान समय में बांस के अलग प्रजातियां भी हैं जो पूरी तरह से भरी हुई रहती हैं।
यह दक्षिणी अमेरिका अफ्रीका ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी एशिया में पाया जाता है। अर्थात वर्तमान समय में बास हर स्थानों में पाया जाता है।
बांस के फूलों को आने में काफी समय लगता है अर्थात 12 से 120 वर्षों के बाद बांस का फूल लगता है और उसमें भी झुकते हैं लेकिन बास्केट फूल और बीज उनकी प्रजाति के ऊपर निर्भर करते हैं। कई प्रजातियों में फूल और बीज बहुत जल्दी लग जाते हैं लेकिन कई में काफी वर्ष के बाद लगते हैं।
बांस का उपयोग हमारे भारतवर्ष में ज्यादा किया जाता है। और रमेश बताता है कि हमारे भारत में इसका उपयोग सारे जानवर जैसे गाय एवं भैंस के बच्चे देने पर उनकी पत्तियों को पानी में उबालकर हम पानी को पानी में उबालकर इस पानी को पिलाया जाता है।
स्वरचित कहानी सुनीता गुप्ता कानपुर उत्तर प्रदेश।
आँचल सोनी 'हिया'
21-Sep-2022 11:23 PM
Achha likha hai 💐
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shweta soni
20-Sep-2022 12:33 AM
Very nice 👍
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Priyanka Rani
19-Sep-2022 08:40 PM
Beautiful story
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