Saurabh Patel

Add To collaction

१८- जन एकता की भाषा हिंदी- रचना १८


कोशिश में ही कोई कमी रह गई होगी
यूंही नहीं आंखों में नमी रह गई होगी

क्यूं नहीं आता किसी और का ख्याल
जहन में जरूर गुलामी रह गई होगी

खुदा यहीं सोचकर नए इंसान बनाता है
बांटने को कहीं पे जमीं रह गई होगी

ज़ारी है अब भी ख़ामोशी कि हुकूमत 
यानी लबों पे कोई बात थमी रह गई होगी

हम इसलिए भी अब तक जिंदा है "सौरभ" 
बाकी इस दिल की नीलामी रह गई होगी।

   14
6 Comments

बहुत ही सुंदर सृजन और एकदम उत्कृष्ठ लेखन

Reply

Saurabh Patel

29-Sep-2022 04:02 PM

जी बहुत शुक्रिया आपका

Reply

Raziya bano

18-Sep-2022 10:39 PM

Nice

Reply

Saurabh Patel

19-Sep-2022 07:20 AM

जी बहुत शुक्रिया आपका

Reply

Reena yadav

18-Sep-2022 09:43 PM

👍👍

Reply

Saurabh Patel

18-Sep-2022 10:19 PM

जी बहुत शुक्रिया आपका

Reply