हिज्र की बाते करते-करते वस्ल के दिन गुजर रहे हैं
हिज्र की बाते करते-करते वस्ल के दिन गुजर रहे हैं
सनम हमारे हमसे अलग अपना एक नया घर कर रहे हैं
अब वो सज-धज के हमे नहीं पूछते कैसी लग रहीं हू
उनके अंदाज से लगता है वो रकीब के लिए संवर रहे हैं
कई जुबानी सुना है मौत का आना एक ही बार होता है
जब से बेवफ़ाई हुई है इश्क़ मे हम हर रोज मर रहे हैं
आशिकों प्यार को हदों मे बाँधना सीख लो थोड़ा-थोड़ा
ये बेहद का ही नतीज़ा है जो हम उनके दिल से उतर रहे हैं।
झूठे वादे कर वादों की अहमियत खत्म ना करो हसीनाओं
उन्होंने भी कहा था साथ रहेंगे मगर अब वो मुकर रहे हैं।
महफिल मे हंसता हू तो लोग खुश रहने का राज पूछते हैं
तन्हाई देखो तो पता चले ज़हन मे कितने ज़ख्म उभर रहे हैं
Punam verma
21-Sep-2022 08:40 AM
Very nice
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Swati chourasia
20-Sep-2022 06:36 PM
बहुत ही खूबसूरत रचना 👌👌
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