हिंदी दिवस प्रतियोगिता गुपचुप
हिंदी दिवस प्रतियोगिता ,no 14
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शीर्षक ,,गुपचुप
गुपचुप गुपचुप आंख मिलाने
आते हैं दीवाने लोग
कैसे इनको मना करूँ मैं,
हैं कितने अनजाने लोग ।।
मेरे घर का पता चला जब
देहरी मेरी लांघ गये
तरह तरह के सम्बाद
सुना कर मंशा अपनी बता गये ।।
इनके मन की बात सुनी जब
कान हमारे पिघल गये
दबी दबी सी खवहिश इनकी
कानों में कह जाते लोग ।।
गुपचुप गुपचुप आंख मिलाने
आते हैं दीवाने लोग
कैसे इनको मना करूँ मैं, हैं
कितने अनजाने लोग ।।
कोई कहे खुद को दीवाना
कोई बताता है अन जाना
कोई कोई तो रूप का मेरे
बन बैठा देखो दीवाना ।।
कैसे इनको समझ सकूं मैं
कैसे मन की बात कहूँ मैं
उल्टी सुलटी मुझे पढ़ा कर
के जाते है बेगाने लोग ।।
गुपचुप गुपचुप आंख मिलाने
आते हैं दीवाने लोग
कैसे इनको मना करूँ मैं, हैं
कितने अनजाने लोग ।।
अभी अभी यौवन आया है
मुश्किल से दिन चार हुये
कैसे इनको ख़बर हुई है
कैसे इनको पता चला है ।।
अनजाने में भूल गई तो
हैं कितने ये सयाने लोग
उम्र न देखें जात न पूछें
सब के सब बतियाते लोग ।।
गुपचुप गुपचुप आंख मिलाने
आते हैं दीवाने लोग
कैसे इनको मना करूँ मैं, हैं
कितने अनजाने लोग ।।
सुनीता गुप्ता कानपुर
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
30-Sep-2022 11:14 AM
बहुत ही सुंदर सृजन,,,, ख्वाहिश होती है जी
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आँचल सोनी 'हिया'
20-Sep-2022 09:28 PM
Achha likha hai 💐
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Swati chourasia
20-Sep-2022 08:37 PM
बहुत खूब
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