सबका कुछ कुछ एक का सब कुछ
सबका कुछ कुछ एक का सब कुछ l
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चाहत के संबंधों की तुरपाई को
उम्र की चादर से ढकना चाहता हूं l
तुमने रिश्ते निभाए आंसुओं से,
और गम के बोझ तले दब गए l
हमने रिश्ते निभाए संबंधों के
इसीलिए कुछ पुष्प से खिल गए l
40 की उम्र के बाद जिम्मेदारियों
की चादर फैल जाती और रिश्ते
निभाने की होड़ लग जाती हैं l
कहीं समझौते होते हैं स्वयं से
कहीं संघर्ष होते हैं अपनों से l
कहीं तन्हाई ही मित्र होती है
कहीं अधिकार होते हैं कुछ पाने को
कभी श्रंगार होता है,मुझे रिझाने को l
एक दीदार की खातिर प्रतीक्षारत
कहीं अरमान पलते हैं नयनाभिराम
कहीं सपने संजोते हैं सुबह ओ शाम l
मैं तुमसे यथार्थ और एहसास
कह रहा हूँ अपने मन के l
तुम मुझ में सिर्फ प्रेमी ही
नहीं तरसती थी,
तुम तलाशती थी मुझमें
एक पिता जो तुम्हारी
गलतियों के बाद भी
तुम्हें उतना ही प्यार दे l
तुम तलाशती थी मुझमें
एक भाई जो मुश्किलों में
तुम्हारे साथ अटल खड़ा रहे l
तुम तलाशती थी मुझमें
एक दोस्त जिसके कंधे पर
सर रखकर तुम रो सको
और अपना दुख बांट सको l
तुम मुझमें तलाशती थी
एक पति जो तुम्हें तुम्हारे
होने का एहसास दिला सके l
तुम्हारा साथ पाकर वह अपने
आपको भाग्यशाली बता सके l
तुम्हें यह सब प्रभू के आशीष से
स्वयं ही मिला है और एक वाक्य
चरितार्थ हुआ है कि
सबका कुछ कुछ एक का सब कुछ l
सुनीता
Pratikhya Priyadarshini
25-Sep-2022 12:41 AM
Bahut khoob 🙏🌺
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Swati chourasia
23-Sep-2022 04:14 PM
बहुत ही सुंदर रचना 👌
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Suryansh
23-Sep-2022 06:16 AM
बहुत ही उम्दा
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