Sunita gupta

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संस्कृति

संस्कृति
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चल हट ए ओढ़नी,
नही रही जरूरत 
तुम्हारी अब हमे,
क्यों की हमने
सभ्यता बदल ली है,
संस्कृति बदल ली है।

कल तक रहे शोषित जो हम,
पर्दा नवीस के नाम पर
उद्दीप्त होने में  जिसे बाधक 
 समझते थे युवा उस ओढ़नी को,
दरकिनार कर 
 हमने परिधान बदल ली है।
चल हट ए ओढ़नी 
नही रही जरूरत अब हमे तुम्हारी,
क्यों की हमने,
सभ्यता बदल ली है,
हमने संस्कृति बदल ली है।

चलते हैं हम मार्सिटिज ओर,
B M W कार से पर,
पहनते उस जींस पेंट को 
जिसमे पैबंद लगने के भी
कोई जगह नही बची या फिर,
हमने पैबंद उतार ली है।
चल हट ए ओढ़नी नही रही अब जरूरत तुम्हारी,
क्यों की हमने,
सभ्यता बदल ली है ,
हमने संस्कृति बदल ली है

मां,पिताजी नही मम्मी पापा 
सुबह जब सो कर उठते तब
नाइट क्लब से हम लौट कर घर आते
हाय, हेलो कर हम चल देते।
प्रकृति के विरुद्ध हमने
दिनचर्या बना ली है।
चल हट ए ओढ़नी,नही रही जरूरत अब हमे तुम्हारी,
     क्यों की हमने
सभ्यता बदल ली 
हमने संस्कृति बदल ली है।

विज्ञान बदल दी हमने
सामाजिक परम्पराओं को,
 धत्ता बता कर
रीति रिवाज बदल दी है,
किशोरा को दरकिनार कर
खुद को युवा होने का अहसास कर ली।
चल हट ए ओढ़नी नही रही जरूरत अब हमे तुम्हारी,
          क्यों की हमने
सभ्यता बदल ली 
हमने संस्कृति बदल ली है।

कवियों ने बहुत लिखा कभी,
फूलों पर भवरें के मंडराने को
आज स्वयम फूल, भवरें पर 
गुण गुणाने लगी हैं।
चाल बदल दी हमने
चलन बदल दी है।
चल हट ए ओढ़नी,नही रही जरूरत अब हमे तुम्हारी,
       क्यों की हमने
सभ्यता बदल ली,
हमने संस्कृति बदल ली है।
                   कॉपी पेस्ट सुनीता गुप्ता       

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7 Comments

Pratikhya Priyadarshini

25-Sep-2022 12:40 AM

Bahut khoob 💐👍

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Raziya bano

23-Sep-2022 07:30 PM

Nice

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Swati chourasia

23-Sep-2022 04:14 PM

बहुत खूब 👌

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