कोरोना
कोरोना
घर-घर में फैला कोरोना,
नींद हमारी उड़ा जाए रे ।
क्वॉरेंटाइन में बैठे हम ,
कोई समीप ना आए रे ।
घर का कोई पास नहीं ,
चारों ओर अंधेरा छाया।
बीमारी से कैसे लड़े हम ,
यह भी समझ नहीं आया ।
सूझबूझ तो गायब हो गई ,
कल तक थी जो साथ हमारे ।
पास भी ना कोईआया ,
वैन ले गई हमें लिवाकर ।
घरवालों ने फेरी ली आंखें,
जानते ना हो पहचानते ना हो।
ऐसा वह व्यवहार है करते ,
ऐसी हुई सब की लाचारी।
कोरोना का सबके मन पर ,
भारी यह आघात हुआ ।
वैक्सीन लगवा रही सरकार,
क्या कुछ होगा इसका निदान।
मन में सोच यही भारी,
बड़ी मुसीबत जग पर आई ।
रूबरू मिलने से बचने लगे ,
फोन पर काम चलाते भाई।
अपनी सुरक्षा अपने हाथ ,
मास्क लगाओ ,दूरी बनाओ।
कम से कम से तुम बाहर जाओ।
बाहर का खाना अब मत खाओ।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
22.9.2022
Palak chopra
29-Sep-2022 08:22 PM
Atti sundar 🌺💐🙏
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Raziya bano
29-Sep-2022 08:20 PM
Nice
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Gunjan Kamal
29-Sep-2022 10:06 AM
शानदार
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