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लेखनी प्रतियोगिता -23-Sep-2022

कैसी हो खुशियाँ...

काले बादल से छा भी जाएं अगर,
चीर के बादलों को, बनकर बारिश बरस जायें।

गहरा हो गर समंदर के जैसे भी,
इतना की गम इसकी तेह तक न पहुँच पायें।

हवाओं जैसा हो इसका एहसास,
कहीं भी मैं रहु, मुझें छू जायें।

आग की तपिश जैसी हो अगर,
तूफानों में भी क़भी बूझ न पायें।

सूखे पत्तो सी हों गर खुशियाँ,
पास अपने रख लूँ संजो कर।

पंछियों सी हो खुशियाँ अगर,
उड़ता रहु आसमानों में फ़िक्र को उड़ा कर।

खुशबुओं सी हो खुशियाँ अगर,
सोंधी सी खुशबूं जैसे पहली बारिश गिरी हो।

नदियों सी हो खुशियाँ अगर,
कल कल बहता साज़ दिल को छु जाए।

खुशियाँ हो अगर पानी के जैसे भी।
हर रंग के रंग में घुल जाए।

खुशियाँ हो एक सुर, साज़ जैसी,
जिसको दिल बार बार सुनने को दिल करें।

खुशियाँ हो गम जैसे भी,
जिसके जाने और आने का बेसब्री से इंतज़ार भी रहे।

खुशियाँ हो धड़कन जैसे भी,
दिल की हर धक धक में महसूस हो जायें।

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8 Comments

Pratikhya Priyadarshini

24-Sep-2022 10:25 PM

Bahut khoob 💐👍

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बहुत ही सुंदर

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Abhinav ji

24-Sep-2022 07:49 AM

Very nice👍

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