आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022
भाग-9
साधना की सास शीला जी को लग रहा था साधना ने काले जादू से उसे मारने की कोशिश की थी। वो अपनी बहु की शक्ल भी नहीं देखना चाहती।नई बहु की मुँह दिखाई के लिए जो गहने बनवाए थे बेटे के जोर देने पर उसने साधना के हाथ में पकड़ा तो दिए जो दीपा की आत्मा देख रही थी उसने अपने जादू से उन गहनों को राख में बदल दिया। गुड़िया के मंसूबे पर पानी फिर गया।
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अपने भाई की शादी की तैयारियों के लिए गुड़िया अपने ससुराल से महीने भर पहले ही आ गई थी।
वो अपनी माँ और भाभीयों से हमेशा यह जानने की कोशिश करती की नई बहु के लिए किसने क्या सोचा है, कौन क्या देगा।
उसके मन में तब लालच ने घर कर लिया जब माँ के साथ वो होने वाली बहु के लिए गहने खरीदने गई थी।जब शीला जी ने एक दस तोले का सोने का हार, उसके साथ के कान के झुमके और अंगूठी वाला सेट पसंद किया। जिसे देख गुड़िया मन ही मन कूढ़ रही थी, यह गहने माँ मुझे नहीं अपनी नई बहु को देगी।मेरी शादी पर तो एक हल्की सी चेन गले में डाली और अपनी नई बहु के लिए इतना भारी हार।माँ के लिए अब बहुएं ही सब कुछ हैं बेटियां कुछ भी नहीं।
वो अपने छह भाई बहनों में पांचवें नम्बर पर थी और उससे छोटा संजय। चारों भाई के लाड़- प्यार ने ही उसे शुरू से जिद्दी और मतलबी बना दिया था। उसे जो चीज पसंद आ जाती वो हर हाल में उसे हथिया लेती, कभी अपनी शक्कर सी मीठी बोली से तो कभी चालबाजी से।
गुड़िया की आँखों में उस हार की चमक ने रातों की नींद छीन ली थी उसकी।वो हार मेरे गले में कितना खूबसूरत लगेगा और वो झूमके तो बेहद खूबसूरत है,उस अंगूठी का डिजाइन भी बहुत सुंदर है। वो दिन रात बस उन गहनों को किसी तरह अपने पास रखने की योजना बनाने लगी।
अचानक एक दिन उसके दिमाग में एक आइडिया आया कि क्यों ना इन गहनों को बदल दिया जाए उसने एक ज्वैलरी शाॉप पर बात की जहाँ पुराने पचास पैसे और एक के सिक्कों को गला कर गहने बनाए जाते हैं। उसने अपना गुल्लक तोड़ा जो वो मायके में ही रखती थी। उसमें पुराने बहुत सारे सिक्के निकले जिन्हें लेकर वो गहने बनाने के लिए कारीगर को दे आई और साथ में अपने फोन से लिए उन गहनों की तस्वीर का प्रिंट आउट निकलवाकर भी दे दिया। कारीगर को बताया बिल्कुल ऐसा ही सेट और सोने की चमक वाला होना चाहिए।
"बिटिया बिल्कुल वैसा ही सैट तैयार होगा जैसा तुमने फोटो दिया है।हम इस पर सोने का पानी से बिल्कुल असली सोने माफिक चमका देंगे ।आजतक कोई माई का लाल हमारे बनाए गहनों में असली नकली की पहचान नहीं कर पाया।बस तुम हमारी मेहनत और गोल्ड पालीस का खर्चा दे देना।
बस हजार रूपए।"
बाँछें खिल गई थी गुड़िया की,जब कारीगर ने बताया कि बिल्कुल वैसा ही सैट बना देगा वो।
बस हजार रुपए खर्च करने पर लाखों का हार उसका होगा।
वो पैसे भी तो उसने अपनी मांँ से ही लिए। मन में प्लान बना लिया था कि जब मांँ बहु को मुंँह दिखाई में वो सैट देगी तब वो उसे नकली गहनों से बदल देगी।
वो जानती थी कि हर नई बहु तो अपनी साड़ी घूंघट और नए रिश्तों को संभालने में इस तरह उलझ जाती है कि अपनी मुंँह दिखाई पर मिलने वाले तोहफे भी कहाँ ठीक से देख पाती है।
अब जब वो दिन आ गया था असली गहनों को नकली से बदलने का तो यह क्या हुआ कोई पहले ही हाथ साफ कर गया और उसकी सारी मेहनत और पैसे पानी में चले गए।
माँ अगर जान गई कि इस डब्बे में गहने नहीं राख भरा है तो फिर उसे सदमा ना लग जाए उसकी तबियत ना खराब हो जाए और जो कुछ मुझे मिलने वाला है वो भी हाथ से जाता रहे।
वो जानती थी कि माँ ने दोनों बेटियों के लिए चाँदी की पायल और बिछिया खरीद कर रखी है। पायल भी काफी ठोस है और दोनों बहुओं के लिए चाँदी की चूड़ियों पर सोने का पानी चढ़वाया है। वैसे वो चूड़ियाँ भी अच्छी लगी थी उसे।
अब दुविधा में घिर आई थी कि अगर किसी को भी पता चला तो सबको यही लगेगा कि यह मैंने ही किया है क्योंकि माँ के साथ उसके कमरे में हरदम मैं ही रहती थी।
गुड़िया ने साधना को समझाते हुए कहा,"भाभी माँ का गुस्सा थोड़ी देर में ही शांत हो जाएगा।आपको अभी नहीं देखा तो क्या हुआ,जीवनभर तो आपको भी देखना है हम बेटियांँ तो अब बस कुछ दिन की मेहमान बनकर ही रह जाती हैं बहुओं का ही घर पर राज चलता है।"
साधना उसकी बातें समझ ही नहीं पा रही थी, उसे तो पता ही नहीं था कि गहनों की जगह राख है और ननद के मन में क्या चल रहा है।
उसे बस अपनी भाभी की बात याद आ रही थी जब विदाई के समय रोते हुए वो बोली," सोमू दीदी आपका घर और हम सब हमेशा आपके ही है और आपके ही रहेंगे बस अब उस नए घर में और वहाँ के सभी लोगों के मन में अपनी जगह बनानी है आपको।
गुड़िया ने बुझे मन से उस राख वाले डिब्बे से नकली गहनों के साथ बदलने के लिए अपने अटैची खोल कर वो डिब्बा निकाल लिया। सोचा एक बार फिर देख लूं शायद आंँखों को धोखा हुआ हो इसमें राख नहीं गहने ही हों।
गुड़िया की सारी हरकतें दीपा की आत्मा देख रही थी। अच्छा तो यह सिद्धार्थ की छोटी बहन इतनी लालची हैं ।अब मजा चखेगी कहकर उसने एक फूंक जोर की मारी जिससे वो राख गुड़िया की आंँखों में घुस गई और पूरा चेहरा राख से भर गया। कमरे की खिड़की खुली थी तो गुड़िया को लगा शायद हवा से ऐसा हुआ। वो अपनी आंँखें मलते हुए वाशरूम में आ पानी के छींटें डालने लगी पर आँखों की जलन बढ़ती ही चली गई।मन का लालच ही आज यह दिन दिखा रहा था गुड़िया को। उसकी आँखें लाल हो गई थी और धुंधला ला सा ही उसे दिख रहा था ।
उस डिब्बे को एक प्लास्टिक बैग में बंद करके अपनी अटैची में रखा और वो नकली गहने वाला डिब्बा साधना को दे आई जो अपने कमरे में बैठी यह सोचकर रो रही थी कि आखिर मेरी क्या ग़लती है?
क्रमश:
आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई।
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है
कविता झा'काव्या कवि'
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#लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता
शताक्षी शर्मा
25-Sep-2022 11:20 AM
Bahut khub
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Chetna swrnkar
25-Sep-2022 10:49 AM
बहुत सुंदर रचना
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Barsha🖤👑
24-Sep-2022 08:27 PM
Very nice
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