दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय पर एकता मे विविधता
एकता में विविधता
तिरंगे ने उत्सव मनाकर भी देखा,
बुझी ख्वाहिशों को जलाकर भी देखा।
दिलों में छुपी थी तमन्ना तो उसको,
खुशी के बहाने जगाकर भी देखा।
तिरंगे ने उत्सव मनाकर भी देखा।।
मगर लोग बाजार बनकर खड़े हैं,
तिरंगे भी कीमत में ठनकर अड़े हैं,
गरीबों का झण्डा गरीबी के जैसा,
अमीरों का झण्डा अमीरी के जैसा,
यही भेद जीवन में सबसे बड़ा है,
तिरंगा तू जीवन में कब से खड़ा है?
मनुज ने तुझे अब लहराकर भी देखा।
तिरंगे ने उत्सव मनाकर भी देखा,
बुझी ख्वाहिशों को जलाकर भी देखा।
दिलों में छुपी थी तमन्ना तो उसको,
खुशी के बहाने जगाकर भी देखा।।
अभी हर जगह पर तिरंगा तिरंगा,
कहीं द्वार पर है दीवारों पे टंगा।
खड़ा है कहीं और पड़ा है कहीं,
वो झुका है कहीं और उड़ा है कहीं।
कहीं वाहनों पर ही लहरा रहा है,
कहीं कुछ मनों में वो फहरा रहा है।
बिना भेद सबने लगाकर भी देखा।
तिरंगे ने उत्सव मनाकर भी देखा,
बुझी ख्वाहिशों को जलाकर भी देखा।
दिलों में छुपी थी तमन्ना तो उसको,
खुशी के बहाने बनाकर भी देखा।।
तिरंगा तू मानव के जैसा है जीवन,
कहीं पर धनी है कहीं पर है निर्धन।
तेरे तीन रंगों से यह जग बना है!
तू दुनियां के तीनों ही रंग से बना है!!
जुड़ें हैं सभी रंग आपस में मिलकर,
तभी तू तिरंगा बना है यूं खिलकर।
यदि एक रंग हो गया होता तेरा,
तो कैसे विविधता में हो सकता एका!
तिरंगे ने उत्सव मनाकर भी देखा,
बुझी ख्वाहिशों को जलाकर भी देखा।
दिलों में छुपी थी तमन्ना तो उसको,
खुशी के बहाने बनाकर भी देखा।
तिरंगे ने उत्सव मनाकर भी देखा।।
सुनीता गुप्ता कानपुर
जय हिन्द!
आँचल सोनी 'हिया'
26-Sep-2022 08:22 PM
Bahut khoob 🙏🌺
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Swati chourasia
25-Sep-2022 08:48 AM
बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌
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Raziya bano
24-Sep-2022 09:42 PM
शानदार
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