Gunjan Kamal

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प्यार जो मिला भी और नहीं भी भाग :- २३




   भाग :- २३ 

तेइसवां अध्याय शुरू 👇

किसी भी व्यक्ति से यदि गंभीर से गंभीर मुद्दे पर बातचीत करनी हो तो उसे प्यार से समझा कर बात करने पर बात बन सकती है। वही बात यदि हम गुस्से में उसे कहते हैं तो सामने वाला भी गुस्सा हो जाता है और हमारी बात उस तक उस ढंग से नहीं पहुंचती जिस तरह से पहुंचनी चाहिए थी जिसे सुनकर वह उसका जवाब दे सकता था  लेकिन यहां पर किशन देव ने आरती से जो सवाल किया, वह  इतने प्यार से किया कि आरती सोचने पर मजबूर हो गई।

मन ही मन में आरती सोच रही है 👇

आरती :- सच ही तो सवाल कर रहे है मुझसे? जो देख रहे है वही तो पूछ रहे हैं मुझसे। जिंदगी ने एक नया मोड़ ले लिया है। दोनों बच्चे भी अपनी - अपनी पढ़ाई में व्यस्त हैं। बड़ा बेटा भी अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं के कारण घर से बाहर ही रहता है और मधु भी अपने पढ़ाई के लिए अपने कमरे में बंद रहती है टेलीफोन पर भी इनसे रोज बात नहीं हो पाती है। अपनी तन्हाई  को कम करने के लिए स्कूल के कामों के साथ-साथ लिखने भी लगी हूॅं। अखबारों और पत्रिकाओं में कहानियां और लेख भी छपने लगे हैं जिन्हें पढ़ने वालो की संख्या  भी बहुत बढ़ रही  है। खतों के जरिए प्रशंसा भी मिलने लगी है। स्कूल में और घर में अपनों के द्वारा निंदा भी हो रही है। इस बारे में इनसे बात करने की सोच ही रही थी लेकिन इनकी खुशी देख कर चुप रही हूॅं। शायद!  इस बारे में मधु ने इनसे बात की हो। मैं भी बात करना चाहती हूॅं लेकिन सही समय का इंतजार कर रही हूॅं । उम्मीद है यह मेरी बात समझेंगे लेकिन सच्चाई तो यह है कि कहीं ना कहीं एक अजीब सी व्यस्तता ने घर कर लिया है और एक सच जो हकीकत बनकर  मेरे सामने खड़ा हो गया है इसको मुझे स्वीकार करना ही होगा। 

मुझे  स्कूल के कामों को और पाठकों को अपने जीवन में कितना स्थान देना है? अपने विचारों को कब और कैसे कहना  है ? इन सब बातों पर सोचना अब शायद जरूरी हो गया है।" 

आरती ने अपने पति की बातों को सकारात्मक रूप में लेकर उसके जीवन के एक सच को स्वीकार करने का सोच लिया है। उसने अब ठान लिया है कि जीवन का जो  सच है कि अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दूं। पति-पत्नी और बच्चों के बीच के  संबंधों का पूर्ण ईमानदारी से निर्वहन करूं। वों सबकुछ करूंगी। अपने शिक्षकीय कार्य के प्रति पूर्ण वफादार तो मैं पहले से ही हूॅं और अपने लेखन के प्रति भी लेकिन इसके अलावा भी  मेरे आस - पास जो हो रहा है उसे महसूस कर उसके प्रति भी समर्पित रहूं और काल्पनिक दुनिया से निकल कर इस  वास्तविक जीवन में सब कुछ अच्छा करूं। 

अपनी पत्नी को सोच के भंवर में फंसा देखकर किशन देव ने अपनी बेटी और बेटे को आवाज लगाई। कुछ देर बाद ही उसके दोनों बच्चें उसके पास खड़े थे। उसने दोनों को बाहर जाकर खाना खाने की बातें बताई और उन्हें जल्द से जल्द तैयार होने को कहा। 

आरती अभी भी सोफे पर बैठी अपनी जिंदगी में आने वाले दिनों के बारे में गणना कर ही रही थी कि किशन देव ने उसे यह कहकर झकझोरा कि यदि इसी तरह वह बैठी रही तो  खाना खाने बाहर जाने में देर हो जाएगी और उसे घर पर जल्दबाजी में बनी खिचड़ी ही खानी पड़ेगी जिसे खाने का मन आज उसका बिल्कुल भी नहीं है। 

अपने पति किशन देव की बातें सुनते ही आरती जल्दी से उठी और अपने कमरे में तैयार होने चली गई क्योंकि थकावट की वजह से आज उसे खिचड़ी भी बनाने का मन नहीं था और इसी बहाने अपने परिवार के साथ समय बिताने का मौका भी तो उसको  मिलेगा, सोचते हुए आरती तैयार हो रही है। 


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अम्मा.... अम्मा ...... अपने पति की आवाज रसोईघर में हलवा बना रही रेणुका के कानों में जैसे ही पड़ती है वह दौड़कर अपनी सास के कमरे की तरफ भागती है। उसकी सास ने भी शायद! बेटे की पुकार सुन ली है तभी तो अपने बिस्तर से वह उठकर कमरे के  दरवाजे की तरफ बढ़ रही है। अपनी बहू  रेणुका को  अपनी तरफ आते देखकर वह समझ गई है कि वह उसे ही बुलाने आई है। 

अपनी बहू  के पास रूककर उसकी तरफ देखते हुए रेणुका  की सास कह रही है 👇

रेणुका की सास :-  जा रही हूॅं उसी के पास। ना जाने क्यों बुला रहा है? जब तक उसके पास नहीं पहुंचेंगे वह अम्मा .... अम्मा की रट  लगाता  ही रहेगा।  यहां से जोर से बोलने पर भी मेरी आवाज सुनेगा नहीं इसीलिए बोल नहीं रही हूॅं। चलो! अब जब  तुम आ गई हो तो तुम्हारे साथ ही उसके पास चलती हूॅं।

रेणुका अपनी सास की बातें सुनकर कह रही है 👇

रेणुका :- नही ...  नही अम्मा। आप जाइए। मेरे जाने से गुस्सा हो गए आपके बेटे तो आज जो उनके कारण खुशी मिली है उस खुशी पर पानी फिर जाएगा और मैं नहीं चाहती कि आज का दिन खराब हो इसलिए आप जाएं और जाकर उनसे बात करें। 

"ठीक है जाती हूॅं।"  कहकर रेणुका की सास बाहर के दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी। 

अपनी अम्मा को अपनी तरफ आते हुए देखकर नारायण ठाकुर अपनी अम्मा की तरफ बढ़ता है और अपनी माॅं के  दोनों हाथों को अपने हाथ से थामकर ले जाकर उसे बाहर के कमरे में लगे  सोफे पर जाकर बिठा देता है और खुद भी अपनी मां के पास बैठकर उनकी तरफ देखते हुए कहते है 👇

नारायण ठाकुर :- अम्मा अभी-अभी जो आदमी मुझसे मिलने आया था उसके मालिक को मुझसे कारोबार संबंधी कुछ बातें करनी है जिसके लिए उसने मुझे एक रेस्टोरेंट में आज रात के खाने के लिए आमंत्रण दिया है और कहा है कि हम अपने पूरे परिवार के साथ वहां पर आए। वह भी अपने पूरे परिवार के साथ वहां पर आएगा और इस तरह हम दोनों परिवार आपस में मिल भी लेंगे और कारोबार की भी बातें हो जाएंगी। तुम अपनी बहू से जाकर कह दो कि आज रात का किसी का भी खाना उसे  बनाने की जरूरत नहीं है। हम सपरिवार उस रेस्टोरेंट में जा रहे हैं। 

नारायण ठाकुर की माॅं अपने बेटे के चेहरे को आश्चर्य से  देखने लगती है क्योंकि आज से पहले ऐसा दिन कभी नहीं आया था कि नारायण ठाकुर ने खुद कहीं पर बाहर जाने के लिए उनसे कहा हो क्योंकि आज से पहले ड्राइवर के साथ वह सबको भेज देता था और खुद नहीं जाता था।  आज जब सबके साथ खुद जाने की बात उनका बेटा कर रहा है तो उन्हें आश्चर्य हो रहा है। अपने बेटे के इस रूप को देखकर नारायण ठाकुर की अम्मा की ऑंखों में ऑंसू आ गए जिसे देखकर नारायण ठाकुर घबरा गया और उसने फिर से अपनी अम्मा का हाथ पकड़ कर  कहा 👇

नारायण ठाकुर :- क्या हुआ अम्मा?  मैंने ऐसी कोई बात तो नहीं कही  जिसके कारण तुम रोने लगो। यदि आपको घुटने में या शरीर में कहीं पर भी दर्द हो रहा है तो मुझसे कहिए। मैं टेलीफोन पर उनसे नहीं आने  के लिए माफी मांग लूंगा क्योंकि आप से बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं है। 

अपने बेटे को अपनी परवाह करते हुए देखकर नारायण ठाकुर की माॅं  अपनी ऑंखों में आए ऑंसू को पोंछने लगी  और बिना कुछ बोले अपने बेटे के सिर पर आशीर्वाद स्वरुप हाथ फेरने लगी। 

क्या नारायण ठाकुर सपरिवार अपने कारोबारी मित्र के बुलाने पर उसके बताए हुए रेस्टोरेंट में जाएगा?  आगे क्या होगा?   जानने के लिए जुड़े रहे इसके अगले अध्याय से। 

क्रमशः


गुॅंजन कमल 💗💞💓


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2 Comments

Khushbu

05-Oct-2022 02:57 PM

Nice part 👌

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Reena yadav

25-Sep-2022 11:50 PM

अगले भाग का इंतज़ार रहेगा 👍👍

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