Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय ,,मान्यता,,

*यूं ही नहीं मान्यता है बिंदी की,*
*स्त्री में छुपे भद्रकाली के रूप को शांत करती है ।*

*यूं ही नहीं लगाती काजल,*
*नकारात्मकता निषेध हो जाती है,*
*जिस आंगन स्त्री आंखों में काजल लगाती है।*

*होंठों को रंगना कोई आकर्षण नहीं,*
*प्रेम की अद्भुत पराकाष्ठा को चिन्हित करती हुई,*
*जीवन में रंग बिखेरती है ।*

*नथ पहनती है,*
*तो करुणा का सागर हो जाती है ।*

*और कानों में कुंडल पहनती है,*
*तो संवेदनाओं का सागर बन जाती है ।*

*चूड़ियों में अपने परिवार को बांधती है,*
*इसीलिए तो एक भी चूड़ी मोलने नहीं देती ।*

सुनीता गुप्ता ,,सरिता,,कानपुर 

*पाजेब की खनक सी मचलती है,*
*प्रेम में जैसे मछली हो जाती है ।*

*वो स्त्री है ... वो देवी है.. जो स्वयं में ब्रह्मांड लिए चलती है..!!!*               *💐 नवरात्रि की शुभकामनाएं।💐*

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9 Comments

Swati chourasia

28-Sep-2022 08:17 PM

बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌

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,बहुत ही बेहतरीन रचना

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Bahut khoob 💐👍🌺

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