Gunjan Kamal

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प्यार जो मिला भी और नहीं भी भाग :- २५

                                                 भाग :- २५


पच्चीसवां अध्याय शुरू 👇


जिस चीज के होने का इंतजार ना हो और वह अचानक से हो जाए तो इंसान समझ ही नहीं पाता कि उस परिस्थिति में वह क्या करें? ऋषभ को भी समझ में नहीं आ रहा था कि उसे किस तरह अपनी प्रतिक्रिया देनी है। वह  तो अपना सुध - बुध खोए रेस्टोरेंट के मुख्य दरवाजे की तरफ देखे ही जा रहा था।


"मुद्दते  गुजरी मुलाकात हुई थी तुमसे
  सालों  बाद आज  की शाम है तुमसे "


"वाह, वाह! किसने कही और किसके लिए कही? दादी के कानों में जैसे ही इन अल्फाजों  का स्वर पहुंचा, उन्होंने अपनी तुरंत ही प्रतिक्रिया दी।


" अम्मा जी!  आपके बड़े पोते ने कही है।" ऋषभ की माॅं  ने अपनी सास को अपने बेटे ऋषभ की तरफ ऑंखों से इशारा करते हुए कहा।


"यह तो शायरी कर रहा है, शायर कब से बन गया मेरा पोता?"  कहते हुए ऋषभ की दादी भी उस तरफ देखने लगी जिस तरफ ऋषभ की नजरें थी।


कुछ देर बाद ही जब ऋषभ की दादी को रेस्टोरेंट के भीतर आती हुई उस लड़की पर नजर पड़ी जिसको ऋषभ लगातार देखे ही जा रहा था। वह समझ गई कि यह वही लड़की है जो उनके पोते  के दिल के बहुत करीब है।


रेस्टोरेंट के भीतर कुछ ही दूरी पर हो रही  इन सब बातों से बेखबर मधु अपने परिवार के साथ बातें करते हुए उस जगह पर पहुॅंच गई जहां पर इन लोगों की टेबल पहले से ही बुक थी।


वह स्थान जहां पर मधु अपने  माता-पिता के साथ बैठी है, कहने को तो ऋषभ से कुछ ही दूरी पर है लेकिन अब  ऋषभ को उसे देखने में परेशानी हो रही है क्योंकि मधु  कुछ दूर हटकर उसके पीछे वाली सीट पर जो बैठी हुई  है।


"माॅं आप मेरी सीट  पर आ जाएंगी प्लीज। मुझे यहां पर बैठने में परेशानी हो रही है।"  अपने प्यार को ना देख पाने की बेचैनी में ऋषभ  ने अपनी माॅं  से कहा।


"मैं तो उधर ही बैठ रही थी, तुम्हीं ने उस समय कहा कि नहीं.. मुझे ऐसी जगह पर बैठना है जहां पर रेस्टोरेंट का मुख्य दरवाजा तुम्हें दिखे।"  ऋषभ की माॅं रेणुका ने सब कुछ जानते - समझते हुए भी ऋषभ को छेड़ने के उद्देश्य से  कहा।


ऋषभ  अपनी माॅं की तरफ देखने लगता है और कुछ देर सोचने के  बाद उनसे कह रहा है 👇


ऋषभ :- मुझे याद है माॅं कि मैंने आपसे कहा था लेकिन इस कुर्सी पर मैं अभी बैठने में अपने आप को सहज महसूस नहीं कर रहा हूॅं। मुझे लग रहा है कि मैं आप की जगह पर बैठा तो शायद मुझे अच्छा लगे।


ऋषभ की माॅं रेणुका ने अपनी सास की तरह कनखियों से देखा और मुस्कुराते हुए अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हुई।


अपनी माॅं को कुर्सी से खड़े होते हुए देखकर ऋषभ के होठों पर बड़ी से मुस्कान तैरने लगी। वह भी अपनी कुर्सी से उठा और लगभग दौड़ते हुए अपनी माॅं के पास जाकर उनसे लिपट गया। कुछ देर बाद उसे लगा कि उसके सामने के लोग उसे देख रहे हैं तो वह अपनी माॅं से अलग हुआ और धीरे से कहने लगा👇


ऋषभ :- थैंक्यू .... थैंक यू वेरी मच माॅं।

ऋषभ की माॅं ने स्नेह से अपना दाया हाथ उसके सिर की तरफ बढ़ाया और उसके बालों को सहला दिया। बालों को सहलाने के बाद स्नेह से उसके गालों पर अपना हाथ रखने के बाद वह उस स्थान पर आकर बैठ गई जहां पर  पहले ऋषभ बैठा हुआ था।


ऋषभ ने सबसे पहले अपनी माॅं की तरफ देखा उसके बाद उसकी नजर उस तरफ उठ गई  है जहां पर मधु अपने परिवार के साथ बैठी हुई है।  अभी कुछ देर पहले जब ऋषभ की ऑंखें सिर्फ  मधु को देख रही थी उस वक्त मधु की निगाहें अपने उस स्थान को  ढूंढ रही थी जहां पर उन लोगों को बैठना था लेकिन अब जब वह  मधु की तरफ देख रहा है तो मधु भी उसकी तरफ ही देख रही है।


मधु को अपनी तरफ देखते हुए देखकर ऋषभ के दिल की धड़कन है बढ़ रही है। उसका तो मन कर रहा है कि वह तुरंत ही मधु के पास पहुंच जाए और उससे कहे कि  गुलाबी सलवार सूट में अपने माथे पर छोटी सी बिंदी लगाए तुम  दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की हो।


ऋषभ को बड़ी - बड़ी ऑंखों वाली और अपनी मनमोहक मुस्कान से उसका मन मोहने वाली मधु से प्यार उसी वक्त हो गया था जब उसने उसकी सादगी देखी थी। दूसरी लड़कियों की तरह मधु का सजने -  संवरने और किसी भी लड़के में कोई रुचि ना रखना भी ऋषभ के मन को उसका बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।


जहां ऋषभ यह देख रहा है कि स्कूल और कोचिंग में दूसरी लड़कियां  लड़कों के बारे में ही बात करती है वहीं पर  उसकी मधु से जब भी बातचीत हुई पढ़ाई और उसके जीवन में प्राप्त करने वाले लक्ष्य के बारे में ही बातें हुई।


ऋषभ और मधु ने आज तक अपने प्यार का इजहार एक -  दूसरे से कभी नहीं किया था। भले ही उन दोनों की जुबान  ने एक - दूसरे को यह बात कभी नहीं कही थी लेकिन दिल तो स्कूल और कोचिंग के उन दिनों में ही मिल गए थे जब दोनों का साथ पढ़ाई के दौरान था।


कुछ दूर आगे ऋषभ के सामने बैठी मधु ने।  रेस्टोरेंट आने के लिए तैयार होते समय अलग-अलग रंगों की सलवार -  कमीज को  पहन कर मधु ने देखा था पर उसे कोई भी पसंद नहीं आया।  कुछ देर के लिए चुपचाप बैठकर कुछ समय के लिए उसने जब अपनी ऑंखें मूंदे थी तभी अचानक से  उसे ऋषभ की कही बात याद आई थी। उसे यह याद आया  कि एक  दिन बातों ही बातों में ऋषभ ने उससे कहा था कि जब भी उसकी माॅं गुलाबी साड़ी पहनती है वह उसे बहुत अच्छी लगती है।


जैसे ही मधु के दिमाग में गुलाबी रंग की साड़ी की बात याद आई वह तुरंत अपनी उस अलमारी की तरफ भागी जहां पर उसने कुछ दिन पहले ही गुलाबी सलवार -  कमीज सिलवाकर रखी थी।


एक महीने पहले की ही बात है जब मधु की माॅं ने उससे कहा था कि कॉलेज आने - जाने के लिए कुछ कपड़े खरीद लेना। मुझे तो फुर्सत नहीं है तुम ही अब इतनी बड़ी हो गई हो कि तुम अपने लिए खरीदारी कर सकती हो और इसी बहाने तुम्हें खरीदारी करने का तजुर्बा भी होगा। खरीदारी संबंधित कुछ जरूरी बातें बताने के बाद मधु के हाथ में  पैसे देने के बाद उसकी माॅं अपने स्कूल चली गई थी।


अपनी एक गाॅंव की ही सहेली के साथ जाकर मधु ने अपने कॉलेज के रास्ते में ही पढ़ने वाली दुकान से सलवार -  कमीज के कुछ कपड़े खरीदे थे जिनमें से यह गुलाबी रंग भी शामिल था। उस समय भी उसने सलवार -  कमीज के लिए खरीदे जा रहे रंगों में उन रंगों का चयन किया था जिसका जिक्र बातों ही बातों में ऋषभ ने उसके साथ कोचिंग के दिनों में की थी।


गुलाबी रंग की सलवार कमीज पहनते हुए मधु खुश तो हो रही  थी लेकिन उस वक्त उसे यह नहीं मालूम था कि जिसकी  पसंद के रंग की सलवार - कमीज  वह  पहन रही है उसे देखने वाले से उसकी मुलाकात आज ही हो जाएगी। आईने में निहारती मधु को उस वक्त भी ऋषभ की उन देखती ऑंखों का एहसास हो रहा था जो अभी उसे हो‌ रहा है। वह ऋषभ को  देख ही रही थी तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना मधु ने तो कभी की ही नहीं थी ....


ऐसी क्या बात है जिसकी कल्पना मधु ने नहीं की थी?  आगे हुई  बातों को जानने के लिए जुड़े रहे इस अध्याय के अगले भाग से।


क्रमशः


गुॅंजन कमल 💓💞💗



# उपन्यास लेखन प्रतियोगिता 


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8 Comments

Raziya bano

14-Oct-2022 08:48 PM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

14-Oct-2022 04:30 PM

बेहतरीन भाग👌👌

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shweta soni

14-Oct-2022 03:23 PM

Behtarin rachana 👌

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