प्रेम पर शक
जब भरत की 2 वर्ष की आयु थी, तो एक महामारी के कारण उसकी मां का देहांत हो गया था। भरत के लिए उसके पिता कुमारपाल ही माता-पिता थे। कुमारपाल एक हीरा व्यापारी के यहां मुनीम का काम करते थे। उन्हें आए दिन व्यापार के कारण शहर से बाहर जाना पड़ता था। इस वजह से भरत को अपनी मुंह बोली चाची के घर छोड़कर जाते थे। कुमारपाल के गांव से थोड़ी ही दूर पर एक नदी बहती थी, इस नदी के पास एक छोटा सा माता का मंदिर था। इस मंदिर की मान्यता थी, कि यहां अगर कोई सच्चे मन से पूजा पाठ प्रार्थना करता है, तो उसकी सब मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। महीने की हर पूर्णिमा पर यहां दूर-दूर के गांव के लोग आते थे। उस दिन यहां नदी के किनारे एक छोटा सा मेला लगता था। कुमार पाल नदी किनारे माता के मंदिर पर अपने पुत्र के साथ हर महीने जरूर जाता था। एक दिन कुमारपाल दूसरे शहर से अपने गांव आता है। तो उसे भरत का दूध से जला हाथ देखकर बहुत चिंता हो जाती है। उस दिन के बाद वह भरतपुर को किसी के पास अकेले नहीं छोड़ना चाहता था। छोटे से भारत और परिवार दोस्तों के दबाव में
कुमारपाल दूसरी शादी कर लेता है। शारदा नाम की युवती से। भरत को कुमारपाल जैसा प्यार करता था। वैसा ही प्यार उसकी सौतेली मां भरत से करती थी। एक डेढ़ वर्ष के बाद शारदा एक पुत्र को जन्म देती है। उस समय भारत की आयु 8 वर्ष की थी। भरत और कुमारपाल उस दिन बहुत खुश होते हैं, और पूरे गांव में लड्डू बांटते हैं। धीरे-धीरे भरत का सौतेला भाई किशन 4 वर्ष का हो जाता है। किशन के बड़े होने के साथ-साथ भारत के मन में यह बात घर करती जा रही थी, कि उसके पिता अब उससे ज्यादा किशन से प्यार करते हैं। महीने की पूर्णिमा को कुमारपाल अपनी पत्नी शारदा और दोनों पुत्र भरत और किशन के साथ माता के दर्शन और नदी किनारे मेला घूमने जाता है। उस दिन जब उसकी सौतेली मां और पिता मेले में 4 वर्ष की किशन को कोई खिलौना दिलाते थे, या प्यार करते थे, तो भारत को किशन से और भी ज्यादा नफरत होती थी। भरत अपनी नफरत के कारण 4 वर्ष के किशन को मदारी का बंदर भालू का खेल दिखाने के बहाने, नदी के किनारे किनारे बहुत दूर अकेला छोड़कर भाग आता है।और उस दिन 4 वर्ष का किशन खो जाता है। किशन को गांव के सब लोग और पुलिस भी नहीं ढूंढ पाती। धीरे-धीरे भारत बड़ा हो रहा था। उसे अपनी गलती का एहसास हो जाता है। उसकी सौतेली मां और पिता के प्यार में उसके लिए कोई कमी नहीं आई थी। किशन से नफरत करना उसके जीवन की सबसे बड़ी गलती थी। भरत एक सरकारी विद्यालय में शिक्षक बन जाता है। और एक पुत्री का पिता बन जाता है। किशन के साथ जो उसने किया था, उसके लिए वह अपने को कभी भी माफ नहीं कर पाता। जिस दिन भरत ने किशन को अकेला छोड़ा था, उस दिन से वह आज तक रोज नदी किनारे माता के दर्शन करने के बाद उसी जगह जाता था, जहां किशन को उसने अकेला छोड़ा था। उस जगह भरत एक दिन अकेला बैठा हुआ था। उसी समय एक युवक दो चाय कुल्लड़ लेकर आता है, एक चाय भरत को देता है। और एक चाय खुद पीता है। और कहता है "मैं तुम्हें बहुत सालों से देख रहा हूं। आप रोज नदी किनारे आते हो। भरत को उस युवक में अपनापन दिखाई देता है। और भरत अपने मन का सारा दुख उसे बता देता है। उस दिन से बलराम नाम युवक भरत का पक्का मित्र बन जाता है। है ।अब भरत नदी किनारे उस युवक का भी रोज इंतजार करने लगता है। जब भी बलराम नाम का युवक उसे मिलता था। तो भरत का मन हल्का हो जाता था। एक दिन बलराम भरत से कहता है "मे यहां की अपनी जमीन जायदाद बेचकर, माता-पिता के साथ दूसरे शहर में व्यापार करने के लिए हमेशा के लिए शहर छोड़ कर जा रहा हूं।" उस दिन दोबारा भरत को किशन के बाद बलराम की जुदाई का वहोतदुख होता है। वह बलराम को पूर्णिमा वाले दिन अपनी सौतेली मां पिता और पत्नी से मेले में आखरी बार मिलने के लिए बुलाता है। और कहता है "मे तुम्हारे लिए और सब के लिए अपनी सौतेली मां के हाथ का स्वादिष्ट खाना बनवा कर लाऊंगा। रात को हम सब मिलकर नदी के पास बैठकर भोजन करेंगे। वह सब भी तुमसे मिलना चाहते हैं।" दूसरे दिन भरत अपने परिवार के साथ नदी के किनारे वाले मंदिर में माता के दर्शन करता है। इतने बलराम अपने माता-पिता के साथ नदी के किनारे मंदिर के पासआ जाता है। बलराम को देखते ही भरत की सौतेली मां उसे अपने सीने से लगा लेती है। और रोते रोते कहती है "यह तो मेरा किशन है। जो 4 वर्ष की आयु में नदी किनारे खो गया था। बलराम के पिता भरत की सौतेली मां का प्यार और दुख देखकर बलराम के बचपन की कहानी सुनाते हैं। बलराम हमें इस नदी के किनारे 4 वर्ष की आयु में रोता हुआ मिला था। और जल्दी से अपनी कार में जाकर बलराम के बचपन के वही कपड़े और उसके गले का लॉकेट लाते हैं। कपड़े और लॉकेट को भरत की सौतेली मां भरत के पिता पहचान लेते हैं।
यह तो किशन के कपड़े और लॉकेट है। और भरत की सौतेली मां भरत के पिता भरततीनों उसे प्यार से अपने अपने सीने से लगाते हैं। उस दिन भरत की सौतेली मां और पिता को अपना पुत्र मिल जाता है। बलराम या किशन को दो परिवारों का प्यार और भरत के जीवन के सबसे बड़े दुख का अंत हो जाता है। कहानी की शिक्षा- कानों से सुना आंखों से देखा भी हमेशा सच नहीं होता समाप्त लेखक राकेश
Khushbu
05-Oct-2022 03:15 PM
Nice
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Punam verma
28-Sep-2022 07:54 AM
Nice
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