फ़रिश्ता
🌹🌹🌹🌹फ़रिश्ता 🌹🌹🌹🌹
मिल तो जाते हैं मगर बात कहाँ होती है।
उनसे पहली सी मुलाक़ात कहाँ होती है।
वस्ले जानाँ की ख़ुशी में जो हुआ करती थी।
अब मुह़ब्बत की वो बरसात कहाँ होती है।
बाँट दे ग़म जो मुह़ब्बत के ज़माने भर को।
क़ल्बे आ़शिक़ से ये ख़ैरात कहाँ होती है।
मेरे शानों पे जो रहते हैं मुसल्लत हर दम।
उन फ़रिश्तों से मिरी बात कहाँ होती है।
जैसे तालिब हैं वो तशहीर के मेहनत के बिना।
ऐसे मशहूर कोई ज़ात कहाँ होती है।
लाख उड़ने को भले आदमी उड़ले लेकिन।
ख़त्म यह राहे समावात कहाँ होती है।
दिन का क्या दिन तो गुज़र जाता है हँसकर लेकिन।
रोय बिन अपनी बसर रात कहाँ होती है।
जिसको कहते है सभी दर्द का दरमाँ यारो।
हम भी देखेंगे वो सौग़ात कहाँ होती है।
जो नसीह़त पे अ़मल करते हैं वाइ़ज़ की फ़राज़।
उनकी क़िस्मत में ख़राबात कहाँ होती है।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद उ0 प्र0।
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Palak chopra
29-Sep-2022 08:27 PM
Bahut khoob 🙏🌺💐
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Raziya bano
29-Sep-2022 08:21 PM
Shaandar
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
29-Sep-2022 09:22 AM
बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ,,,
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