आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022
भाग-15
भटफोड़ी की रस्म में मटकी में रखे गोबर सने कीचड़ को दीपा ने अपनी शक्ति से केंचुएं में बदल दिया। साधना केंचुएं से डरती थी और जब उसने खुद पर उसे रेंगते देखा तो डर कर बेहोश हो गई, उसे डर के कारण बुखार हो गया। सिद्धार्थ ने उससे उसके इस डर की वजह पूछी।
गतांक से आगे...
सिद्धार्थ द्वारा पूछे जाने पर कि आखिर आप केंचुएं से क्यों डरी?
साधना अपने बचपन का वो दिन याद कर सिहर उठी और सिद्धार्थ के सीने से लग खूब रोई।
वो भूल ही गई थी कि उसे इस इंसान जिससे उसकी शादी हुई है कोई मतलब नहीं रखना है। उसे देखना, बातें करना.. वो जिंदगी भर उससे दूरी बनाए रखेगी क्योंकि सावन की जगह किसी को अपने मन में नहीं दे सकती।उसके मन और तन दोनों पर सिर्फ और सिर्फ सावन का हक है।
अपने से ही किए वादों को वो उस पल भूल ही गई थी।
***
दो साल की साधना अपनी मम्मी को बार बार तंग कर रही थी जब उसकी मम्मी खाना बना रही थी। उस दिन उसका जन्मदिन था और घर में मेहमान आने वाले थे।अकेली उसकी मम्मी परेशान हो रही थी कि बड़ी बेटी बिमार है दूसरी छोटी बच्ची को संभाले या खाना बनाए।बेटा अपने खेलने में मस्त हैं।कोई उसके काम में हाथ बंटाने वाला नहीं।
साधना मम्मी की गोदी से उतरना नहीं चाह रही थी, और मम्मी जबरदस्ती उसे अपनी गोदी से उतार रही थी।
मम्मी मम्मी गोदी.. गोदी की रट लगाए उसका बुरा हाल था। उसके पेट में तेज दर्द हो रहा था। वो मम्मी की नजर बचाकर मिट्टी खा लेती थी। मिट्टी की खुशबू और उसका स्वाद उसे बहुत अच्छा लगता।
मम्मी जब देखती उसे मिट्टी खाते तो डाँटती, फिर मिट्टी खाई तूने। वो रोती रोती पापा के पास जाती।
पा..पा.. पा….पा ... मु...को... माँ...माली
उ..को...मालो....
पापा मुझको माँ ने मारा आप उसको मारो...यह उसके कहने का मतलब होता।
वो पापा के पास माँ की शिकायतों का पिटारा अपनी तोतली बोली में रख देती ।
,, पापा समझाते," मेरी प्यारी गुड़िया रानी पेट में कीड़ा हो जाएगा ।फिर तेरे को ही ना परेशान करेगा... "
....और गुदगुदी लगाते,
.. ऐ! ऐसे काटेगा कीड़ा।
,,और साधना हंसते हंसते लोटपोट हो जाती।
पापा उसे बहुत प्यार करते थे।पर हमेशा तो उसके साथ नहीं खेल सकते थे।उनको ऑफिस भी तो जाना होता था फिर दिन भर मम्मी की डांँट सुनती रहती।
उस दिन उसकी मम्मी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे। कैसे खाना बनाए और फिर साफ सफाई कर बच्चों को तैयार करना और खुद तैयार होना। भी जरूरी था।साधना के पापा ने कुछ दोस्तों को खाने पर इन्वाइट किया था।
रोती हुई अपनी बेटी को गोदी से उतारा और वहाँ रखी खाट के पाए से उसे बाँध दिया। साधना रो रही थी और मम्मी फटाफट आलू भुजिया काट रही थी।
,,तभी भाई अपने दोस्तों के साथ खेलकर आया , उसके हाथ में एक बड़ा सा डिब्बा था जिसमें से चूं चूं की आवाज आ रही थी। भाई ने उसे साधना को दिखाया तो उसने अपने आंँसू अपनी फ्रॉक से पोछे और भाई को और उसके हाथ में रखे भूरे गत्ते के डिब्बे को देख भूल ही गई कि वो थोड़ी देर पहले क्यों रो रही थी।
भाई ने जब साधना को खाट से बंधे रोते हुए देखा और मम्मी को खाना बनाने में व्यस्त। झट से साधना की रस्सी खोलकर उसे बाहर ले जाने लगा तो मम्मी ने उसे देखकर कहा," तूने सुबह से कुछ नहीं खाया है, चल पहले खा ले फिर इसके साथ खेलना और थोड़ी देर इसको संभालना बहुत सारा काम बाकी है।"
" मैं तो तेरी दोनों बहनों से परेशान हो गई हूँ।सोमू को छोड़ यह ऐसे ही रोती रहेगी, हाथ पैर धो ले। मैंने तेरे लिए पूरी आलू भुजिया बनाई है पहले खा ले।"
"माँ आप दे दो खाना। मैं बाहर बैठ कर खा लूंगा और सोमू को भी संभाल लूंगा।"
भाई भी बहुत अच्छा लगता था साधना को, वो उसके लिए हमेशा कुछ ना कुछ नई चीजें लाता।
"अरे!मेरी गुड़िया रानी क्यों रो रही थी। देख मैं आज तेरे लिए नए दोस्त लाया हूँ। चल हम पहले खाना खाएंगे फिर एक नई तरह की टॉफी है मेरे पास। और उसके बाद खेलेंगे हम नए दोस्त के साथ जो इस डिब्बे में बंद हैं।" डिब्बे में से चूं चूं की आवाजें आ रही थी।
भाई की बातें सुनकर साधना का पेट दर्द उड़न छू हो गया।वह भी भाई के साथ खाना खा रही थी।उसे आलू भुजिया बहुत अच्छी लग रही थी।वो दौड़ दौड़ कर कमरे में चली जाती जिसके एक कोने में मम्मी का किचन था।
मा…. आ... ऊ... दे..
वो बार बार जाती और मम्मी से आलू भुजिया मांँग कर ले जाती, थोड़ा खुद खाती और थोड़ा भाई की थाली में डाल देती।
खाने के बाद भाई ने दो पूरी के छोटे छोटे टुकड़े करके थाली में रख दिए।
साधना ने याद दिलाया... भ… ई..या... टॉ...फी... दो..
भाई ने अपने हाफ पैंट की पॉकेट से काले रंग के पत्थर जैसे छोटे छोटे टुकडे साधना के हाथ में दिए।
वो काला नमक था,जिसका टेस्ट साधना को बहुत अच्छा लगा।
भाई ने उस गत्ते के डिब्बे को खोल कर उसमें से मुर्गी के चार बच्चों को निकाला । जिसे देखकर साधना ताली बजा रही थी और कूद रही थी।
दोस्त..... दोस्त.....दोस्त....
मे...ले.. पा...ले… पा...ले ...
(मेरे प्यारे प्यारे दोस्त)
वो चूज़े भी जैसे साधना की तोतली भाषा अच्छे से समझ रहे थे। और उसके आगे पीछे गोल गोल घूम रहे थे। और उन्हें पकड़ने के लिए साधना भी गोल गोल घूम रही थी।
खाने के बाद खेलने कूदने से, या उस काले नमक के टुकड़े को टॉफी समझ चबा कर खाने से,या रात में जो पापा ने दवाई दी थी ... इनसे से ही किसी चीज का असर हुआ उसे उल्टियांँ शुरू हो गई।
उसने देखा उसकी उल्टी में से मम्मी के स्वेटरों वाला भूरे रंग का मोटा ऊन के टुकड़ों जैसे कुछ निकल रहा है और वो अपने आप जमीन पर रेंग रहा है, जिसे उन छोटे छोटे खिलौने जैसेँं मुर्गी के बच्चे पकड़ पकड़ कर खा रहे हैं। यह देख वह बहुत घबरा गई। वो हमेशा मिट्टी खाती थी इसलिए पापा ने डॉक्टर से पूछकर उसे पेट के कीड़े मारने की गोली खिलाई थी।शायद इसी कारण सुबह से उसका पेट दुख रहा था।
उल्टी में मुँह से निकले केंचुएं के जैसे ही कीड़े और फिर मुर्गी के बच्चों को उसे लपक के खाते देखा । वो भयानक डर गई और बुखार हो गया।यह दृश्य उसके मानस पटल पर हमेशा जीवित रहा।
क्रमश:
आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई।
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।
कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी धा
Khushbu
05-Oct-2022 03:33 PM
Nice part 👌
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Gunjan Kamal
28-Sep-2022 04:01 PM
शानदार भाग 👌👏🙏🏻
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