क्षणिकाएं – २३

क्षणिकाएं – २३

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कितनी भी मुट्ठी भींच लो, फिसलती जा रही
रेत जैसी जिंदगी, निकलती जा रही।।

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मेरी फितरत नहीं खफा होके दूर जाने की
बावफा हूं आदत है मुझको भी यारी निभाने की।।

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भूल गए क्या लाज़िम है जिंदगानी के लिए
दो घूंट पानी दो कतरा हवा, क्या मानी है खून की रवानी में
गर भर दोगे जहर इस दुनिया फानी में
हो जाओगे बूढ़े सीधा बचपन से जवानी में।।

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ये दौर भी अजीब है, गम हर कदम नसीब है
आरज़ू है जिंदगी, पर मौत भी करीब है
लहू अभी जमा नहीं, सांस भी थमा नहीं
कदम तो लड़खड़ा रहे पर होंसला डिगा नहीं।।

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शब्दों के इस बवंडर में
रिश्तों को घिरते देखा है।
रिश्तों को बनते देखा है
रिश्तों को बिखरते देखा है।।


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रात भर जिन ख्वाबों को हम बुनते रहे
सुबह उठे तो सपने टूट गए
सच्चाई के धरातल पर गिर कर चकनाचूर हुए।।

आभारनवीन पहल – २९.०९.२०२२  💐👍🌹🙏

# नॉन स्टॉप 2022 

 

 

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6 Comments

Atti sundar 🌺🙏

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Raziya bano

29-Sep-2022 08:16 PM

Nice

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Palak chopra

29-Sep-2022 03:34 PM

Bahut khoob 💐👍

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