Ashish Kumar

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लेखनी प्रतियोगिता -30-Sep-2022

समुद्री डाकू

सालों पुरानी बात है। समुद्री डाकुओं का एक गिरोह यात्रा कर रहे एक जहाज पर टोह लगाए हुए था। खबरी से खबर मिली थी कि नजदीक के चंदन गढ़ नगर के नामी व्यापारी दूर देश से काफी धन कमा कर लौट रहे हैं।

सभी डाकू सरदार के एक इशारे की प्रतीक्षा में थे। जैसे ही जहाज नजदीक आया, सरदार भैरव सिंह की कड़कती हुई आवाज गूँजी - हमला...... करो। सभी डाकू अपने जहाज से एक-एक कर पानी में कूद गए और उस जहाज की तरफ तैरते हुए बढ़ने लगे। जहाज पर रस्सी के सहारे काँटा फँसा कर ऊपर चढ़ गए और सभी यात्रियों को घेर लिया।

तब तक सरदार भैरव सिंह भी जहाज पर आ पहुँचा। उसकी लाल लाल आँखें और लंबी मूँछें देखकर और शेर सी दहाड़ सुनकर दहशत का माहौल कायम हो गया। कड़कते हुए उसने कहा - जो भी माल लेकर आ रहे हो, सब हमारे हवाले कर दो, नहीं तो किसी की भी खैर नहीं।

डर के मारे सब की सिट्टी-पिट्टी गुम थी। कोई कुछ बोल ना रहा था। सबके पास जो कुछ भी था, लाकर सामने रख दिया। सब कुछ बटोरने के बाद सरदार ने सभी को वापस लौटने का संकेत दिया ही था कि तभी लगभग अठ्‍ठारह वर्ष की आयु की एक बच्ची उसके सामने आती है। उससे बोलती है -  मैं जानती हूँ, असली खजाना कहाँ है। आप जो ले जा रहे हैं, वह उस खजाने के आगे तो कुछ भी नहीं।

सरदार अचरज से भर जाता है। पूछता है कि तुमने यह क्यों बताया कि असली खजाना कहाँ है। लड़की बोलती है कि मुझे भी आप जैसा एक समुद्री डाकू बनना है इसलिए। सभी डाकू ठठाकर हँस पड़े। तब वह पूछता है कि तुम्हें आखिर समुद्री डाकू ही क्यों बनना है? तुम तो एक लड़की हो। लड़की का जवाब सुनकर सभी हैरान रह गए - क्योंकि मेरा बाप भी एक समुद्री डाकू था। उसके बाद वह अपने गले से एक ताबीज निकालकर दिखलाती है कि यह है वह खजाना। सभी डाकू ठहाके मारकर फिर से जोरों से हँस पड़े। एक डाकू हँसते हुए बोला - यह कौड़ियों के दाम वाला चाँदी का ताबीज तुम्हारा खजाना है।

लेकिन सरदार उसे एकटक घूरे जा रहा था। ताबीज देखते ही उसे  दस साल पहले की घटना याद आ गई जब वह सिपाहियों से बचते हुए अपनी आठ साल की बेटी के साथ भागा-भागा फिर रहा था। उसके हाथ में खजाने का एक नक्शा था। उसी दिन उसकी बेटी की सालगिरह थी और उसने अपनी बेटी से वादा किया था कि इसके बाद वह कभी समुद्री डाकू का काम नहीं करेगा।लेकिन अपने आपको घिरता देख सिपाहियों के हाथ वह नक्शा न लग जाए, इसलिए उसने वह नक्शा अपनी बेटी के ताबीज में डाल दिया था। सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और कारागार में डाल दिया। साथियों की सहायता से किसी प्रकार वह वहाँ से बच निकला और अपनी बेटी को काफी ढूँढा, लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला और आज जब उसको सामने पाया तो उसकी आँखों से आँसू झर झर बहने लगे।

उसने अपनी बेटी को पास बुलाया लेकिन उसने आने से मना कर दिया। वह बोली कि मुझे भी समुद्री डाकू बनाओगे तो मैं चलती हूँ साथ में। नहीं तो फिर यह नक्शा ले जाओ। वैसे भी अब यह मेरे किसी काम का नहीं।

लड़की ने आगे बोलना शुरू किया - मैं बचपन से चाहती थी कि आप मेरे साथ रहे, लेकिन आप समुद्री डाकू बन कर दूसरों को लूटते रहे। अब आपके साथ रहने के लिए मुझे तो समुद्री डाकू ही बनना पड़ेगा। नहीं तो फिर मैं कल भी अकेली थी और आज भी अकेली हूँ।

बेटी की बातें सुनकर एक डाकू के हृदय में पिता जाग गया। उसने अपने हथियार को समुंदर की समाधि दे दी और लूटा हुआ सारा धन भी वापस कर दिया। फिर कसम खाई कि आज के बाद वह कभी किसी को नहीं लूटेगा और एक जिम्मेदार पिता की तरह अपनी बेटी का ख्याल रखेगा। उसके गिरोह के अन्य डाकू भी सरदार के इस कदम के साथ हो लिए। उन्हें भी उस लड़की ने ईमानदारी और परिवार का मर्म समझा दिया था। उन सभी ने भी अपने हथियारों को समुंदर में फेंक दिया और ईमानदारी के रास्ते पर चलकर परिवार के साथ रहने की कसम खाई। इस तरह समुद्री डाकू बनने की एक परंपरा का भी अंत हो गया और समुद्री डाकुओं का गिरोह भी समाप्त हो गया

                - आशीष कुमार
             मोहनिया कैमूर बिहार

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6 Comments

Khushbu

05-Oct-2022 04:05 PM

Nice

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Ashish Kumar

10-Oct-2022 11:58 PM

Thank you🙏

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Gunjan Kamal

01-Oct-2022 01:04 AM

बहुत खूब

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Ashish Kumar

10-Oct-2022 11:58 PM

Thanks🙏

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shweta soni

30-Sep-2022 10:46 AM

अच्छी रचना 👌

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Ashish Kumar

30-Sep-2022 04:39 PM

जी बहुत-बहुत धन्यवाद

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