Kavita Jha

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आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022

भाग -२३

साधना शादी के पाँच दिनों बाद रात को सिद्धार्थ के कमरे में सोने गई। सिद्धार्थ ने हीरे की नोजपिन उसे उपहार स्वरुप दी जिसे देख दीपा की आत्मा तिलमिला उठी और उन दोनों को परेशान करने के लिए छत  पर चढ़ बिल्ली बनकर गुस्से में आकर चूहे खाने लगी।

डरी सहमी सी साधना सिद्धार्थ की बाहों में सोती रही और वो रात भर छत को मरम्मत करवाने के बारे में सोचता जगा रहा।

गतांक से आगे...

ठीक सुबह पाँच बजे अलार्म की आवाज से साधना की नींद खुली। उसने खुद को सिद्धार्थ की बांँह पर देखा तो हड़बड़ा कर उठ बैठी। 

"ओह सॉरी! मैं रात भर ऐसे ही आपके हाथ को तकिया समझ सोती रही और आपने मुझे उठाया भी नहीं। आपके तो हाथ दुख रहें होंगे।"

"इतनी भी भारी नहीं हैं आप। रात को चूहे बिल्लियों की खटर - पटर से डर गई थी। फिर हमारी पहली रात में ही आपको डरते हुए कैसे छोड़ देता।"

साधना ने घबराकर खुद को गौर से देखा। कहीं कुछ किया तो नहीं रात को सिद्धार्थ ने उसके साथ। 
हे भगवान! कैसे मैं इस अजनबी को ही अपना सहारा समझ रही हूँ।रात भर इसकी बांहों पर सोती रही। जरूर.…

"नहीं साधना जी आप जो समझ रहीं हैं ऐसा कुछ नहीं हुआ हमारे बीच। मैं आपकी मर्जी के बिना कुछ नहीं करूंगा। 
तसल्ली हो गई हो तो अब मैं जरा बिस्तर से उठूंँ।रात भर वाशरूम भी नहीं गया और थोड़ी देर में स्कूल के लिए मुझे निकलना होगा। आप भी अब माँ के पास अपने पक्के वाले घर में ही चली जाईए।यहाँ अकेली क्या करेंगी दिन भर।खाना पीना सब वहीं होता है। इधर कमरे में मैं ताला लगा देता हूं वरना जंगली जानवर मेरे इस राजमहल पर कब्जा कर लेंगे। "

अंतिम वाक्य कहने के बाद ज़ोर से हंँस दिया सिद्धार्थ।

पहली बार साधना ने सिद्धार्थ को इस तरह हँसते हुए देखा था। बहुत ही प्यारी बच्चों सी हंँसी से साधना खुद को सिद्धार्थ की हंँसी में शामिल होने से नहीं रोक पाई।

"अच्छा तो आप इसे राजमहल कहते हैं।ये तो खंडहर ही  दिख रहा था रात को और अभी भी इस कमरे की हालत तो बहुत बुरी लग रही है।"

साधना ने कमरे की दीवारों से गिरते काले पड़ गए सफेदी की पपड़ियों और टूटे हुए फर्श और काली मिट्टी जैसे रंग के खपड़ो वाली छत जो कभी भी गिर पड़ेगी देखते हुए कहा।

"आप वहां बड़े वाले मकान में सबके साथ क्यों नहीं रहते?वहाँ तो कितने सारे कमरे हैं।"

"तुम को यहांँ दिक्कत हो तो वहीं रहा करो। मैं अपना यह कमरा नहीं छोड़ने वाला। इसमें मेरी बचपन की यादें जुड़ी हैं ।यह मेरे बाबूजी का कमरा था।वो पक्का घर भाई ने बनाया है।माँ को अपने साथ वहांँ ले गया पर मैं यहीं रहूंँगा।वैसे शायद तुमने ध्यान नहीं दिया।उसी मकान की एक और मंजिल बन रही है ।अभी वहांँ का काम रोक दिया गया है। होम लोन के लिए एप्लाई कर रखा है,पैसों का इंतजाम हो जाता है तो फिर काम शुरू होगा।सब चाहते हैं मैं भी सबके साथ वहीं आकर रहूंँ और मेरा मन बिल्कुल नहीं करता सबके साथ रहने का।"

सिद्धार्थ साधना के साथ बहुत सहज हो कर बात करते वक्त खुद भी भूल गया वो अब साधना को आप से तुम कहने लगा।

क्रमशः

कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता 

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2 Comments

नंदिता राय

01-Oct-2022 09:28 PM

Nice part 👌

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Gunjan Kamal

30-Sep-2022 12:12 PM

शानदार भाग

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