Kavita Jha

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आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022

भाग- २७

साधना सुबह का नजारा देख खुश थी उसे सब बहुत अच्छा लग रहा था पर उसे यह याद नहीं आ रहा था कि रात को वह किस रास्ते  से सिद्धार्थ के कमरे में आई थी।
 सिद्धार्थ का अपने पिता के प्रति लगाव देखकर साधना के मन में उसके लिए एक विशेष स्थान बनते जा रहा था। सब सो रहे थे सिद्धार्थ उसे माँ के पक्के मकान के दरवाजे तक छोड़ कर खुद काम पर चला गया और साधना अकेले बैठ कर समय बर्बाद करने से अच्छा झाड़ू लगाकर आंँगन साफ करने लगी। हाथों में कांँटे चुभ गए और खून निकलने लगा।
सावन की आत्मा साधना की यह हालत देख दुखी हो उठी । साधना भी मन ही मन सावन से माफी मांगती है।

अब गतांक से आगे...

अब यह रोज की ही कहानी हो गई, साधना रोज रात को घर में सारा काम खत्म करके सबके सोने के बाद सिद्धार्थ के कमरे में जाती और सुबह सबके उठने से पहले आ जाती। आँगन साफ करती पेड़ पौधों की देखभाल करती, हैंडपंप से पानी निकाल कर बगीचे में डालती। 

दिन में जब सब आराम करते वो काम खत्म होने के बाद कुंँए की मुंडेर के पास बैठ जाती।

 हमेशा पढ़ाई लिखाई में व्यस्त रहने वाली साधना अब घर के कामों में व्यस्त रहा करती। दिन में जैसे ही थोड़ा समय मिलता सबकी नजर बचाकर वो सिद्धार्थ के कमरे में चली जाती,जिसकी चाबी वो बाहर बरामदे में ही छोड़ कर जाता जिसकी जगह उसने साधना को दिखा दी थी।

वो वहांँ जाकर पहले साफ सफाई करती फिर सिद्धार्थ की किताबों को पढ़ती।

एक दिन उसकी नजर काले कवर की एक डायरी जो अलमारी के नीचे गिरी थी उस पर पड़ी।वो जानती थी कि किसी की डायरी नहीं पढ़नी चाहिए पर पता नहीं उस दिन उसे क्या हो गया कि उस डायरी को पढ़ने से वो खुद को रोक ही नहीं पाई।

 पहला पन्ना पढ़ा फिर पढ़ती ही चली गई और उसने जब यह पढ़ा कि सिद्धार्थ खुश नहीं हैं उसकी इस शादी से, उसे साधना बिल्कुल पसंद नहीं है।

"उसका भविष्य चौपट हो गया कैसे इतनी बदसूरत के साथ जीवन बिताऊंगा। "

साधना की आंखों से गिरते आंसुओं से डायरी का पन्ना पूरा गीला हो गया।तभी उसे लगा जैसे उधर से कोई आ रहा है।शीला देवी ने साफ मना किया हुआ था दिन में इस इलाके में मत आना। किसी भी किराएदार के सामने मत जाना।

उसने सासूमांँ की आवाज सुनकर घबराकर डायरी बंद की और उसे जगह पर रख दिया। शीला जी वहांँ कुंँए के पास वाले अमरूद के पेड़ से अमरूद और पूजा के लिए फूल तोड़ने आईं थीं।

डरी सहमी साधना बस डायरी में लिखी उन बातों को सोच रही थी और कमरे के एक कोने में दीपा की आत्मा खुश हो रही थी।अपने मकसद में कामयाबी जो दिख रही थी उसे। डायरी में यह बातें जो साधना को दुखी करने के लिए ही लिखीं थीं वो दीपा की बुरी आत्मा का ही कमाल था। वो हर हाल में साधना को मानसिक रूप से कमजोर कर देना चाहती थी जिससे वो सिद्धार्थ की जिंदगी से दूर हो जाए।

सासूमाँ के वहाँ से चले जाने के बाद वो भी कमरा बंद करके पक्के वाले मकान की तरफ चल दी।
अब यह रास्ते उसे ना तो डरावने लगते और ना अनजान। दोपहर के भोजन के उपरांत सब जब अपने अपने कमरों में आराम करने चले गए तब साधना कुँए के पास जाकर बैठ गई।

 सिद्धार्थ अपने कमरे में बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रहा था। जिसकी आवाज उसे कुँए पर बैठे हुए साफ सुनाई दे रही थी, एक मन कर रहा था उसका कि वो भी कमरे में जाकर बच्चों को पढ़ाए, सिद्धार्थ के पास जाकर बैठे पर जैसे ही उसे डायरी में लिखी बात याद आई वो कुँए में कूदने के लिए मुंडेर पर खड़ी हो सोचने लगी...

क्रमशः
कविता झा'काव्या कवि'
# लेधारावाहिक 

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1 Comments

नंदिता राय

01-Oct-2022 09:21 PM

शानदार

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