दैनिक प्रतियोगिता हेतु लिखी विषय ,, पीड़ा
ये सच है कि, पीड़ा एक खूबसूरत
अंत चाहती है
पर कुछ पीड़ाओं का अंत
शायद हम नहीं चाहते 😊
बंधे रहते हैं, उससे बिना डोर के
मन्नतों के धागों सा मजबूत
मन के किसी कोने में बसा लेते हैं
पारिजात के पुष्प की सुंगध की तरह,,
मालूम है कि नहीं समेट सकते
खूशबूओं को,हवाओं को,
अनकहे जज़्बात और प्रेम की धाराओं को 😊
फिर भी लड़ते हैं,
और फिर अचानक ही आती है प्रलय
तोड़ती हुई सारे भ्रमों को, सावचेत करती हैं
तुम जिन पीड़ाओं को जिए जा रहे हो अकेले,
कोई तुमसे और संसार से तुम्हारे मुक्त
अपने आप में विलीन हो चुका है 🌼😊
सुनीता गुप्ता ,,सरिता,कानपुर
Khan
06-Oct-2022 11:50 PM
Bahut khoob 🙏🌺
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Suryansh
05-Oct-2022 11:10 PM
बहुत ही उम्दा और सशक्त रचना
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आँचल सोनी 'हिया'
05-Oct-2022 10:25 PM
Bahut khoob likha hai 💐👍
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