लेखनी प्रतियोगिता -04-Oct-2022 प्रेम की पुकार

प्रेम भरी पुकार

आख्या लखनऊ में रहने वाली एक बहुत ही होशियार बहुमुखी प्रतिभा की धनी लड़की थी। उसका जन्म भी लखनऊ में ही हुआ था, परंतु उसके माता-पिता एक कस्बे में रहते थे। क्योंकि आंख्या की ननिहाल लखनऊ में थी इसलिए वह लखनऊ में जन्मी और पली-बढ़ी भी। उसकी पढ़ाई लिखाई भी लखनऊ में पूर्ण हुई।

आख्या आई ए एस बनना चाहती थी, लेकिन उसका यह सपना उसकी मां ने पूर्ण नहीं होने दिया। उन्हें आख्या की शादी की जल्दी थी, क्योंकि वह छोटी जगह की रहने वाली थी। सो उनके आसपास के सभी लोग हमेशा आख्या की शादी के बारे में पूछते रहते।

 और मां आकर के वही बात आख्या के पिताजी से बार-बार कहती कि जल्दी कोई लड़का देखो और आख्या की शादी कर दो। आख्या के पिता मां को समझाते, कि वह अभी पढ़ना चाहती है,तो उसे पढ़ने दो। परंतु आख्या की मां की जिद  के आगे पिताजी की एक न चली, और पिताजी ने लड़का ढूंढना शुरू किया।
 
 अचानक एक दिन उनके जानने वाले काफी रसूखदार एक इंसान ने आकर आख्या के लिए एक लड़का बताया।आख्या के पिताजी क्योंकि उसके लिए लड़का ढूंढ ही रहे थे। उनकी बात सुनकर आंख्या के पिताजी ने उस लड़के और उसके परिवार से मिलने की ठान ली। 
 
अगले ही दिन वह इंसान आख्या के पिताजी को साथ लेकर उस लड़के के घर पहुंचा। घर देकर आख्या के पिताजी कतई तैयार नहीं हुए, और उन्होंने कहा कि यह घर मेरी बेटी के लायक नहीं है ।परंतु उन सभी ने मिलकर इस तरह बातों में फसाया, कि आख्या के पिताजी अगले ही दिन उसकी मां को लेकर वहां पहुंचे। 

उस लड़के ने बड़ी ही चालाकी से मां को एक थाली में खाना खिला कर जैसे मोहित कर लिया था।  वह मम्मी ... मम्मी कहते नहीं थक रहा था। 3 दिन बाद ही एक नुमाइश में आख्या को उस लड़के को दिखाया गया। लड़का बिना पढ़ा लिखा था, उसने अपने आपको बताया कि वह पढ़ रहा ह। आख्या के पिताजी ने बिना जांच पड़ताल  किए अपनी बेटी को यूं ही दिखा दिया।

 आख्या को देखते ही वह लड़का पागलों की तरह मोहित हो गया, और उसने अपने माता-पिता से पूछे बिना ही शादी के लिए हां.... कर दी।  गोद भराई की डेट भी दे दी, और 1 महीने के अंदर ही उनकी शादी हो गई। शादी के तुरंत बाद ही आख्या को अपने मायके से पैसे लाने को कहा जाने लगा।
 आख्या एक मेधावी छात्रा और बहुत ही होशियार लड़की थी। उसे समझते देर न लगी कि वह लालची लोगों के बीच फंस गई है। उसका जीना मुहाल हो गया। उसका ससुर उससे कहता कि वह अपने मायके से पैसे लेकर आए,पति मारता पीटता और खाने को नहीं देता। यह सब चलते चलते 1 महीने गुजर गया। उसे कोई ऐसा नहीं मिलता कि वह अपने पापा तक कोई खबर पहुंचा सके।

एक दिन शाम का समय था, आख्या अपने कमरे में फूट-फूटकर रो रही थी। और अपने पिता को याद कर रही थी। उसके दिल की निकली प्रेम की पुकार  और ससुराल से मिले दर्द की आह उसके पिता तक पहुंच ही गई। अचानक पिता के कमरे में आख्या की तस्वीर पिता के पैरों तले गिरी।

  आख्या की तस्वीर गिरते ही पिता जी  अपनी बेटी को याद कर रोने लगे, और उन्हें आभास हुआ कि उनकी बेटी किसी कष्ट में है। उन्होंने तुरंत आख्या की मां से कहा..... कि मैं कल ही आख्या से मिलने जाऊंगा। और अगले ही दिन बेटी की प्रेम पुकार का एहसास कर पिता बेटी की ससुराल के लिए निकल पड़े।  

जब आख्या के पिता बेटी की ससुराल पहुंचे तो बेटी पिता से लिपटकर बिलख बिलख कर रो रही थी।बेटी की हालत देखते ही पिता समझ गए,कि उसकी बेटी बहुत ही कष्ट में हैं। और ससुराल वाले उस पर अत्याचार कर रहे हैं। यह तो अच्छा था, कि पिता उस रसूखदार इंसान को अपने साथ लेकर गए थे। उन्होंने बिना देर लगाए अपनी बेटी को वहां से घर ले आना उचित समझा। और खाली हाथ अपनी बेटी को अपने घर ले आए।

आपको अपने पिता के घर में रहने लगी पर हमेशा ही शांत और बुझी बुझी सी रहती। माता-पिता के समझाने पर भी उसको कुछ समझ में नहीं आता था। क्योंकि लड़कियां शादी हो जाने के बाद पति से जो प्यार करने लगती हैं। उसे भुलाना उनके लिए कठिन होता है। फिर वह चाहे जैसा भी हो, जबकि उसका पति बहुत ही दुष्ट प्रकृति का व्यक्ति था। परंतु वह हमेशा उसको याद करती।

उधर उसका पति भी अपनी पत्नी को याद कर परेशान होता और किसी से कुछ ना कह सकता। वह भी बहुत गुमसुम रहने लगा था। माता-पिता के दहेज का लालच और अपनी बदतमीजी का उसे एहसास हो गया था। इधर वह अपनी पत्नी को बहुत याद करता , उधर उसकी पत्नी उसको बहुत याद करती और दोनों की प्रेम पुकार एक दिन अचानक आमने सामने आकर टकरा गई।

 और वह दोनों एक दूसरे के गले लिपट गए। पर एक झटके के साथ ही दोनों अलग हो गए। आख्या ने उसको छोड़ दिया और दूर से हटकर खड़ी हो गई। उसके पति ने उस से माफी मांगी और कहा .....कि आप क्या मुझे माफ कर दो, और मेरे साथ घर चलो. अब तुम्हारे साथ ऐसा कुछ भी नहीं होगा। जो पहले हुआ था, मैं कान पकड़कर तुमसे माफी मांगता हूं। आख्या ने कहा....
 
 नहीं अब मैं आपके साथ नहीं जा सकती अब मैं अपने माता पिता के साथ खुश हूं क्योंकि तुम मेरा भरोसा एक बार तोड़ चुके हो, और मैं दोबारा मैं तुम पर विश्वास नहीं कर सकती। यूं तो मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं। परंतु अब हम दोनों साथ नहीं रह सकते। बहुत मनाने पर और अपने माता-पिता के समझाने पर आख्या को मजबूरन अपने पति के साथ ससुराल जाना पड़ा।

परंतु ससुराल जाकर वह हमेशा सचेत रहती,क्योंकि अब उसको ससुराल वालों पर विश्वास नहीं रह गया था। ससुराल जाकर आख्या ने अपनी रसोई भी अलग बनाना शुरू कर दिया और अपने पति के साथ प्रेम से रहने लगी, कभी-कभी सास-ससुर चूं चुकुर करते तो उसका पति उनको डांट कर चुप करा देता। और कहता कि तुम मेरे जीवन में कोई भी व्यवधान उत्पन्न मत करो।

 हमें अपने तरह से जीने दो। इस तरह प्रेम की पुकार और प्रेम के एहसास ने दोनों के जीवन को भी संयोग के बाद वियोग, और वियोग के बाद संयोग में बदलकर एक साथ रहने का मतलब समझाया और आज वह दोनों एक साथ रहकर प्रेम के गीत संगीत में डूबकर जीवन में आगे बढ़ रहे हैं। और अक्सर वियोग के समय में प्रेम की पुकार के एहसास की बातें किया करते और समय का शुक्रिया अदा करते।

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी' 
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्व रचित मौलिक व अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित। 

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18 Comments

Seema Priyadarshini sahay

06-Oct-2022 05:25 PM

बहुत खूबसूरत

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Bahut khubsurti se likha hai aapne ma'am 🌺💐👍👌

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बहुत बहुत आभार

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Kaushalya Rani

05-Oct-2022 09:33 PM

Beautiful part

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