दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय कविता
कविता का शीर्षक
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मै संसार मे सबको अपना बनाने की कोशिश किया करती हूं।
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गम की दरिया मे रहकर, औरों का सहारा बनती हूं,।औरों के आंसू पीकर,
मै प्यास बुझाया करती हूं।
अनजान नही हूं खुशियों से,
पर गम से तकल्लुक रखती हूं।
फूलों की खुश्बू छोड़कर,
कांटों मे उलझी रहती हूं।
दोस्ती से रहूं न दूर कभी ,
दुश्मनी से किनारा करती हूं।
वो वार करें , हम प्यार करें,
इस तरह गुजारा करती हूं।
सागर की तरह सबसे मिलकर ,
औरों को संभाला करती हूं।
हो दर्द अगर दिल मे कहीं,
खुशियों से निकाला करती हूं।
संघर्षों मे जीकर के, मै राहें बनाया करती हूं।जीवन के आनंद का तभी
मै लुफ्त उठाया करती हूं।
जीवन मे खुद न उठकर भी,
गिरतों का सहारा बनती हूं।
सुनीता गुप्ता ,कानपुर उत्तर प्रदेश
Suryansh
14-Oct-2022 09:36 PM
लाजवाब लाजवाब
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Ilyana
11-Oct-2022 04:42 PM
Nice
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Sachin dev
11-Oct-2022 04:40 PM
Nice
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